Book Title: Jeev Vichar Prakaran
Author(s): Manitprabhsagar
Publisher: Manitprabhsagar

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Page 235
________________ 50000 SHESARITERARE जीव विचार प्रश्नोत्तरी HERBERIES छट्ठा देवलोक लान्तकेन्द्र 200000 सातवां देवलोक महाशुक्रेन्द्र 40000 160000 आठवां देवलोक सहस्रारेन्द्र 30000 120000 नौवां-दसवां देवलोक प्राणतेन्द्र 20000 80000 ग्यारहवां-बारहवां अच्युतेन्द्र 10000 40000 481) तीन किल्बिषिक देवलोक कहाँ पर स्थित हैं ? उ. पहला किल्बिषिक पहले-दूसरे देवलोक के नीचे है। दूसरा किल्बिषिक तीसरे चौथे देवलोक के नीचे और तीसरा किल्बिषिक छठे देवलोक के नीचे स्थित है। 482) कौनसे जीव मरकर किल्बिषिक देव बनते हैं ? उ. जो जीव सर्वज्ञ, तीर्थंकर परमात्मा की वाणी के विरूद्ध प्ररूपणा करते हैं, वे ही पापी जीव प्रायः किल्बिषिक देवों में उत्पन्न होते हैं। जिस तरह यहाँ शूद्र जाति वाले भंगी-चमार-ढोली आदि का अपमान होता है, वैसा ही अपमान इन देवों का देवलोक में होता है। वे बिना बुलाये देवों की सभा में जाते हैं, बोलते हैं / उनकी भाषा किसी को प्रिय न लगने के कारण अन्य देव उनको रोक देते हैं / उनको अपमान सहना पडता है। 483) किल्बिषिक देवों के कितने भेद होते हैं ? उ. किल्बिषिक देवों के तीन भेद होते हैं - 1) तीन पलिया (त्रिपल्योपमिक)- जिन किल्बिषिक देवों की स्थिति तीन पल्योपम की होती हैं, उन्हें तीन पलिया कहते हैं। 2) तीन सागरिया (त्रिसगारिया)- जिन किल्बिषिक देवों की स्थिति तीन सागरोपम की होती हैं, उन्हें तीन सागरिया किल्बिषिक देव कहते हैं। 3) तेरह सागरिया (त्रयोदश सागरिक)- जिन किल्बिषिक देवों की स्थिति तेरह सागरोपम- की होती हैं, उन्हें तेरह सागरिया किल्बिषिक देव कहते हैं। 484) नवलोकान्तिक देवों के क्या नाम हैं ? उ. 1) सारस्वत 2) आदित्य 3) वह्नि 4) अरूण 5) गर्दतोय 6) तुषित 7) अव्याबाथ

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