________________ 888- जीव विचार प्रकरणी संस्कृत छाया असंज्ञीसंज्ञीपंचेन्द्रियेषु नव दश क्रमेण बोधव्या / तैः सह विप्रयोगो जीवानां भणयते मरणं / / 3 / / शब्दार्थ - असन्नि -असंज्ञी | सन्नि - संज्ञी पंचिदिएसु - पंचेन्द्रिय जीवों में नव - नौ दस -दस कमेण - अनुक्रम से बोधव्वा - जानने चाहिये तेहिं -उनके सह - साथ, संग (का).... . विप्पओगो - विप्रयोग, वियोग जीवाणं - जीवों का भण्णए - कहा जाता है मरणं - मरण . भावार्थ असंज्ञी एवं संज्ञी पंचेन्द्रिय प्राणियों में अनुक्रम से नौ एवं दस प्राण होते हैं। उनका वियोग जीवों का मरण कहलाता है // 43 // विशेष विवेचन असंज्ञी एवं संज्ञी जीवों के प्राण-संख्या का उल्लेख इस गाथा में किया गया है। " असंज्ञी - वे जीव जिनके मन नहीं हो / मन रहित जीव असंज्ञी कहलाते हैं। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, संमूर्छिम तिर्यंच एवं संमूर्छिम मनुष्य असंज्ञी होते हैं। संज्ञी - जिनके जीवों के मन हो अथवा चिन्तन की शक्ति हो, वे संज्ञी कहलाते है / केवल पंचेन्द्रिय जाति के जीव ही संज्ञी होते है / उनमें देव, नारकी, पर्याप्ता गर्भज मनुष्य एवं तिर्यंच संज्ञी होते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में पांच इन्द्रिय(स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय) प्राण, तीन बल (मन बल, वचन बल, काय बल) प्राण, श्वासोच्छ्वास