________________ 888 जीव विचार प्रकरण द्वितीय विभाग पांच द्वारों का कथन गाथा एएसिं जीवाणं सरीरमाऊ ठिई सकायम्मि / पाणा जोणि पमाणं जेसिं जं अस्थि तं भणिमो॥२६॥ अन्वय एएसिं जीवाणं जेसिंजंसरीरं आऊसकायम्मि ठिई पाणा जोणि पमाणं अत्थितं भणिमो // 26 // . संस्कृत छाया एतेषां जीवानां शरीरमायुः स्थितिः स्वकाये / प्राण योनि प्रमाणं येषां यदस्ति तद्भणिष्यामः // 26 // शब्दार्थ एएसिं - इन पूर्वोक्त जीवाणं - जीवों में सरीरं - शरीर आउ - आयुष्य ठिई - स्थिति सकायम्मि - स्वकाय में पाणा - प्राण जोणि - योनि पमाणं - प्रमाण जेसिं - जिसको जं- जितना अस्थि - है तं - उसे भणिमो - कहते हैं। . . भावार्थ इन पूर्वोक्त पांच सौसठ जीवों में जिनका जितना शरीर (अवगाहना), आयुष्य, स्वकाय स्थिति, प्राण और योनियों का प्रमाण होता है, उसे कहा जाता है॥२६॥