________________ 8 जीव विचार प्रकरण 8888888888 संस्कृत छाया सिद्धाः पंचदश भेदाः तीर्थातीर्थादि सिद्धभेदेन / ' एते संक्षेपेण जीव विकल्पा: समाख्याताः // 25 // शब्दार्थ सिद्धा - सिद्ध पनरस - पन्द्रह भेया - भेद तित्थ - तीर्थंकर अतित्थ - अतीर्थंकर आइ - आदि सिद्ध - सिद्ध भएणं- भेदों की अपेक्षा से एए - ये संखेवेणं - संक्षेप में जीव - जीव (के) विगप्पा - विकल्प (भेद) समक्खाया- आख्यान भावार्थ तीर्थंकर, अतीर्थंकर आदि भेदों की अपेक्षा से सिद्ध जीव पन्द्रह प्रकार के हैं। एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय एवं सिद्धों के भेद संक्षेप में आख्यायित (निरुपित) किये गये हैं // 25 // विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में सिद्धों के भेदों का वर्णन किया गया है / - सिद्ध किसे कहें ? - वे जीव जिन्होंने घाती रुप चार कर्मों का एवं अघाती रूप चार कर्मों का सर्वथा - संपूर्ण क्षय कर दिया हैं। जन्म-जरा और मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर लोक के अग्रभाग सिद्धशिला पर बिराजमान हो गये हैं, वे जीव सिद्धात्मा/मुक्तात्मा कहलाते हैं। सिद्ध जीवों के पन्द्रह भेद होते हैं / इस गाथा दो भेद नामपूर्वक प्ररूपित किये गये हैं। तीर्थकर सिद्ध - वे जीव, जो तीर्थंकर बनकर मोक्षगामी होते हैं, वे तीर्थंकर सिद्ध कहलाते हैं। जैसे महावीरादि चौबीस तीर्थंकर परमात्मा। तीर्थंकर साधु-साध्वी-श्रावक