Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
View full book text
________________
शंका ६ और उसका समाधान और पर) प्रत्यय यानी उपादान और निमित्तकारण मिलकर पदार्थोंके उत्पाद और व्ययके हेतु होते है। उन दोनों कारणोंमसे किसी एक भी कारणके अभाव में उस पर्यायरूप उत्पाद-पाय नहीं होते है। जिस प्रकार कि कोठीमै रक्स्वा उड़द जलादि बाह्य निमित्त सामग्रीके अभाव में नहीं पकता है और इसी तरह उबरते हुए पानी में पड़ा हुआ घोटक ( कोडरू ) उड़द ( पकनेकी उपादान शक्तिके अभावमें ) नहीं पकता है ।
इस प्रकरण में एक अन्य दृष्टान्त का भी ले लीजिए-खानमें बहुत-सी ऐसी मिट्टी पड़ी हुई है, जिसमें आगमके अविरोधपूर्वक हमारे दृष्टिकोणके अनुसार घसा, सकोरा आदि विविध प्रकारके निर्माणको अनेक योग्यताएं एक साथ हो विद्यमान है, कुम्हार भी हमारे समान हो अपना दृष्टिकोण रखते हुए खानमें पड़ी हुई उस मिट्टी मेंसे अपनी मावश्यकताके अनुसार कुछ मिट्टी बिना किसी भेदभावके घर ले आता है । इसके बाद उसके मन में कभी यह कल्पना नहीं होती कि इस लायो हुई मिट्टी में से अमुक मिट्टीसे तो घड़ा ही बनेगा और अमुक मिट्टीसे सकोराही बनेगा, वह तो इस प्रकार के विकल्पोंसे रहित होकर ही उस सम्पूर्ण मिट्टीको घड़ा, सकोरा आदि विविध प्रकारके आवश्यक एवं संभव मभी कायाँके निर्माण योग्य समानरूपसे तैयार करता है और तैयार हो जाने पर वह कुम्हार अपनी आवश्यकता या आकांक्षाके अनुसार उस मिट्टीसे बिना किसी भेदभावके घड़ा, सकोरा आदि विविध प्रकारके कार्यों का निर्माण कभी भी अपनी सुविधानुसार कर डालता है । उसे ऐसा विकल्प भी कभी नहीं होता कि उस तैयार की गयो मिट्टी से बड़ेका या सकोरा आदिका निर्माण जन होना होगा तब हो ही जायगा ।
___ यह ठीक है कि मिट्टी में बड़ा, सकोरा आदि बनने की यदि योग्यता होगी तो ही उससे घड़ा, सकोरा आदि बनेंगे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जिस मिट्टी में बड़ा बननेको योग्यता है उसमें सकारा आदि बनने की योग्यताका अभाव रहेगा । योग्यताऐं तो उस मिट्टी में यथासंभव सभी प्रकारकी रहेंगी, लेकिन कार्य यही होगा जिसके लिये यह कुम्हार आवश्यकताके अनुसार अपनी आकांक्षा, ज्ञान और श्रमशक्तिके आधार पर अपना व्यापार चालू करेगा ।
यह भी ठीक है कि यदि कुम्हार घड़े के लिये अपना व्यापार चाल करता है सा घड़ा बनने से पहले उस मिट्टीकी उस कुम्हारके व्यापारका अनुकूल सहयोग पार क्रमसे पिण्ड, स्थास, काश और कुशूल पर्याय अवश्य होंगो, मह कभी नहीं होगा कि विद्यादि उक्त पर्यायोके अभातम ही अथवा इन 'पर्यायोको उत्पत्ति परिवर्तित कमसे होकर भी मिट्टी घड़ा बन जायगी। इस तरह हम अनुभवगम्य बात पर अवश्य ध्यान देना चाहिये कि यदि कुम्हार खानमें डोहई मिट्टीको अपने घर लानेरूप अपना व्यापार नहीं करेगा, तदनन्तर उसको घट निर्माण के अनुकूल तैपार नहीं करेगा और इसके भी अनन्तर वह उसको क्रमसे होनेवालो पिर, स्थास, कोश, कुशल तथा घटरूप पर्यायोंके विकास में अपने पुरुषार्थका अनुकूलरूपसे योगदान नहीं करेगा तो वह मिट्टो त्रिकालमें घड़ा नहीं बन सकेगी।
हमारी समझ में यह बात बिल्कूल नहीं आ रही है कि प्रत्यक्षदृष्ट, तब रांगत और आगमप्रसिद्ध एवं आपफे बारा स्वयं प्रयुक्त को जानेवालो कार्यकारणभावकी हमारे बारा प्रतिपादित उक्त व्यवस्थाको अपेक्षा करके प्रत्याविरुद्ध, तर्कविरुद, आगमविरुद्ध तथा अपनी स्वयंको प्रवत्तियोंके विरुद्ध कार्यकारणभाषके प्रतिपादन में आप क्यों संलग्न हो रहे हैं?
हमारे द्वारा प्रतिपादित कार्यकारणभाषको उक्त व्यवस्थाको प्रत्यक्षदष्ट और आपके द्वारा प्रतिपादित कार्यकारणभाषको व्यवस्थाको प्रत्यक्षविरुद्ध इसलिये हम कह सकते हैं कि घड़े का निर्माण कार्य कुम्हारके व्यापार