Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अप्काय और वनस्पतिकाय (१०)। बादर वनस्पतिकाय बारह होते हैं-वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वग (ईख आदि ), तृण, वलय ( कदली आदि जिनकी त्वचा गोलाकार हो ), हरित् ( हरियाली), औपधि, जलरुह ( पानी में पैदा होनेवाली वनस्पति ), कुहण (पृथ्वी को भेदकर पैदा होनेवाला वृक्ष ) (२०)। साधारणशरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के होते है. (२२)। त्रस जीव तीन प्रकार के होते हैं-तेजस्काय, वायुकाय और औदारिक त्रस' (२२)। औदारिक त्रस चार प्रकार के होते हैं-दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पांच इन्द्रिय वाले (२७) । पंचेन्द्रिय चार प्रकार के होते हैं-नारक, तिथंच, मनुष्य और देव (३१)। नरक सात होते हैंरत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, महातमःप्रभा (३२)। तिर्यञ्च तीन प्रकार के होते हैं-जलचर, थलचर, और नभचर (३४)। जलचर पांच प्रकार के होते हैं-मत्स्य, कच्छप, मकर, ग्राह और शिशुमार (३५)। थलचर जीव चार प्रकार के होते हैं-एकखुर, दोखुर, गंडीपय और सणप्पय (सनखपद) (३६)। नभचर जीव चार प्रकार के होते हैं-चम्मपक्खी, लोमपक्खी, समुग्गपक्खी और विततपक्खी ( ३६ )। मनुष्य दो प्रकार के होते हैं-संमूच्छिम मनुष्य और गर्भोत्पन्न मनुष्य (४१)। देव चार प्रकार के होते हैं-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक (४२)।
दूसरी प्रतिपत्ति :
संसारी जीव तीन प्रकार के होते हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक (४४) । स्त्रियाँ तीन प्रकार की होती हैं-तिर्यञ्च, मनुष्य और देव (४५)। पुरुष भी तीन प्रकार के हैं-तिर्यञ्च, मनुष्य और देव (५२)। नपुंसक तीन प्रकार के. होते हैं-नारक, तिर्यञ्च और मनुष्य (५८)। नपुंसक वेद को किसी महानगर के प्रज्वलित होने के समान दाहकारी समझना चाहिए (६१)।
तीसरी प्रतिपत्तिः
नरक की सात पृथ्वियों का वर्णन करते हुए निम्न बातों का उल्लेख किया गया है :
१. बहुत से आचार्यों ने तेजस् और वायुकाय को स्थावर जीवों में गिना है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org