Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १८ दशार्ण
मृत्तिकावती १९ चेदि
शुक्ति २० सिन्धु-सौवीर
वीतिभय २१ शूरसेन
मथुरा २२ भंगि
पापा २३ वट्टा (?)
मासपुरी (?) २४ कुणाल
श्रावस्ती २५ लाढ
कोटिवर्ष २५३ केकयी अर्ध
श्वेतिका' जात्यार्य-अंबष्ठ, कलिंद, विदेह, वेदग, हरित, चुंचुण ( या तुंतुण) । कुलाये-उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, जात, कौरव्य ।
१. महावीर के काल में साकेत के पूर्व में अंग-मगध, दक्षिण में कौशांबी,
पश्चिम में स्थूणा और उत्तर में कुणाला तक जैन श्रमणों को विहार करने की अनुमति थी। तत्पश्चात् राजा सम्प्रति ने अपने भट आदि भेज कर २५३ देशों को जैन श्रमणों के विहार योग्य बनाया। देखिए-बृहत्कल्प
भाष्य, गा० ३२६२. २. ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री से उत्पन्न सन्तान को अम्बष्ट कहा गया है,
देखिए-मनुस्मृति तथा आचाराङ्गनियुक्ति (२०-२७)। ३. वैश्य पुरुष और ब्राह्मण स्त्री से उत्पन्न सन्तान को वैदेह कहा गया है,
देखिए-मनुस्मृति तथा आचाराङ्गनियुक्ति ( २०-२७)। ४. उमास्वाति के तत्वार्थभाष्य (३.१५) में इक्ष्वाकु, विदेह, हरि, अम्बष्ट,
ज्ञात, कुरु, बुबुनाल (?), उग्र, भोग, राजन्य आदि की गणना जातिआर्य में की गई है। श्वपच, पाण, डोंब आदि को जैन ग्रन्थों में जाति
जुंगित कहा है। ५. क्षत्रिय पुरुष और शूद्र स्त्री से उत्पन्न सन्तान को उग्र कहा गया है,
देखिए-मनुस्मृति तथा आचाराग-नियुक्ति । ६. तस्वार्थभाष्य (३.१५) में कुलकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि
की गणना कुल-आर्य में की गई है।
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