Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text ________________
जैन साहित्य का वृहद् इतिहास
पृष्ठ १४९
२१८.२१९
१३१ १०७
भन्द अविनीत अविरुद्ध अविरुद्धक अव्यवशमित-प्राभूत अबत्तिय ময়নি अशिव अशोक अशोकचन्द्र अशोकलता अश्लेषा अश्व अश्वकर्ण अश्वकर्णी अश्वतर अश्वत्थ अश्वमित्र अश्वमुख अश्विनी अष्टनाम अष्टमंगल अष्टविभक्ति अष्टापद
११६,३२९ ११६,३२९
पृष्ठ शब्द २४८ असंस्कृत २१ असन
असमाधि-स्थान २४८ असि
असिद्ध ८४
असित्तिया ७४,२०१
असिलक्षण ४८,८५
असिवोवसमणी
असुरकुमार १२,१३१
असोगवणिया
अस्त १०८
अस्तिनास्तिप्रवाद अस्तिनीपूर अस्तिनीपूरांग अस्त्र अस्थि
अस्थिक ३२ अस्थिकच्छप
असायण १०८,१०९ अहि ३३०
अहिच्छत्रा
अहिसलाग ३२५,३३०
अहोरात्र ११८,१२४ अहोरात्रि
३२६ ३३८ आउरपच्चक्खाण
आकर
आकर्ण ७९ आकाशगामिनी १६९ आकाशतल
८९
१८४ ८५,२२९
८५
१०८
८९ ७०,६१
७८
आ
असंख्येय असंख्येयक असंख्येयासंख्येयक असंज्ञी असंयत असंयम
३१७ ७२,२३८
१३,१५१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462