Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text ________________
३७४
शब्द
उत्कुटुक आसनिक
उत्कृष्टकुंभ
उत्क्षित
उत्तरकुरु
उत्तरकूलग
उत्तरंग
उत्तरज्झयण
उत्तरपार्श्वक
उत्तराध्ययन
उत्तराध्ययन-निर्युक्ति
उत्तरापुढवय
उत्तरापोवता
उत्तराफाल्गुनी
उत्तराषाढ़
उत्तरासंग
उत्थानश्रुत
उत्पल
उत्पलांग
उत्पात
उत्पादन
उत्पादनदोष
उत्पादपूर्व
उत्सर्ग
उत्सर्पिणी
उत्सव
उत्सेध
उत्सेधांगुल
उदक
उदक
उदकमत्स्य
Jain Education International
पृष्ठ
१४
३३१
४९
७८,९०, १२३
२२
५०
१४४
५०
५५,१४३,३२०
१४६
१०९
१०८
१०८,१०९, २२७ १०८, १०९
१२
३२०
८७, ११५, ३२९, ३३३
११५,३२९,३३३
.४९, १५१
१९५
१९६
३२१
२१५
११४, ३२९
७३
५०
३३२
७०
८६,८७
७४
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास्क
शब्द
उदकुंभ
उदगन्ताभ
उदधिकुमार
उदय
उदायी
उदुंबर
उद्गम
उद्गमदोष
उद्गार
उद्दसंग
उद्देहिय
उद्दानपालक
उद्दायन
उद्घारपल्योपम
उद्भिन्न
उद्वेग
उन्नत आसन
उन्मादप्राप्त
उन्मान
उन्मिश्रित
उपकरण
उपक्रम
उपक्रमद्वार
उपदेश
उपदेशरुचि
उपधान
उपधारणता
उपधि
उपनयन
उपपात सभा
For Private & Personal Use Only
पृष्ठ
७०
१०९
७४,९५
१०७
१२
८५.
१९५
१९६
२५०
८८
८८
५६
१६१
३३४
१९६
७४
७
२६०
३३१
१६७
२०६,२०९,२६६
३२५
३२९
३२८
९५
२९१
३१७
२०९
२८
७८
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462