Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text ________________
४२०
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
रूव
१०८,१०९,१३८
शब्द रात्रिजागरण रात्रिभक्त रात्रिभोजन रात्रिभोजन-विरमण रात्रिवस्त्रादिग्रहण राम रामकण्ह रामायण रायपसेण इय रायपसेणिय रायपसेगी रायाराम रायाराय
३०५
८९
९०,१२१
पृष्ठ २७ रूप्यक
२४२ १६९,२४७,२५० रेचकरेचित
१८३ रेचित २४२ रेणुका
१६३ रेवती १३०,१३४ रेवतीनक्षत्र ११८,३१९,३३६ रैवतक
८,३७ रोग ३२० रोझ
रोमक २४ रोमपास २४ रोहक ८७ रोहगुप्त ११८ रोहतक ३२८ रोहिणिय
रोहिणी ४६ रोहितमत्स्य
रोहितांश
रोहितास्या २३ रोहीडय १३८ ८४
लउस लओस
३१३
१३८
८८
रावण राशि रासगायक रिंगिसिका
८७,१०८,१०९,१६३
८८
रिभित
१२४
१३८
रुक्त्रमूलिआ रुक्मिणि रुचक रुचक-द्वीप रुचक-समुद्र रुद्धदास रुद्र रुद्रमह रुरु रूप रूपी
१०,३८,७३
लंभनमत्स्य लकुच
७ 14.4A
१७,६९
४७,८७,८९,९०
३१८
लकुटशायी लक्षण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462