Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 426
________________ अनुक्रमणिका . पूर्णभद्र २१ ३०९ शब्द पृष्ठ शब्द पृष्ठ पूतिकर्म १९६ पौलिंदी पूतिनिंबकरंज ८५ प्रकीर्णक ३२०,३४५ ११,७८,१३७ प्रकृतिभाव ३३० पूर्तिकर्म २७४ प्रचंक्रमण ११५,१५१,३२९,३३३ प्रच्छादक २०९ पूर्वगत ३२१ प्रजल्पन २८ पूर्वपुढवय प्रजमनक ६३ पूर्ववत् प्रज्ञा ३५३ पूर्वसंस्तव-पश्चात्संस्तव प्रज्ञापना ८३,८४,३२०,३२८ पूर्वांग ११५,३२९,३३३ । प्रणत आसन ७५ पूर्वाफाल्गुनी १०८,१०९ प्रणामा पूर्वाषाढ १०८,१०९ प्रणीतभूमि पूसफली प्रतर पृथक्त्व प्रतिक्रमण१६९,१७४,२९६,३२०,३२८ पृथिवीकायिक प्रतिग्रह २४६ पृथिवीशिलापट्टक ११३ प्रतिचंद्र पृथ्वीकाय प्रतिचार पृथ्वीकायिक ७९ प्रतिपातिक ३०८ पृष्ठश्रेणिकापरिकर्म प्रतिपृच्छना १६९ पृष्ठचंपा २२९ प्रतिबद्धशय्या २४१ पृष्ठापृष्ठ प्रतिमा पेया प्रतिमान पेलुगा प्रतिमास्थायी पोक्खरगय प्रतिलेखना २०१ पोडइल प्रतिवर्धापनक पोतक २४५ प्रतिश्रुति पोत्तिय २१,१३५ प्रतिष्ठा पोत्यकार प्रतिष्ठान पोरग ८७ प्रतिसंलीनता पोरेकन्त्र . २७ प्रतिसूर्य ७४ पौरुषीमंडल ३२० प्रतिसेवना २०१,२१. ६७ ३२१ ३२१ ९६१ ४५ प्रति ३१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462