Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 427
________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास पृष्ठ ه ه ه ه ه प्रतोदयष्टि १६ प्रवीचार प्रत्यक्ष प्रव्रज्या २४८ प्रत्याख्यान १६९,१८१,१७६,३२०, प्रव्रज्या-स्थविर ३२८,३४८ प्रशास्ता १४, ४० प्रत्याख्यान-प्रबाद ३२१ प्रशिष्य ३२१ प्रत्यावर्त प्रश्नव्याकरण ३१९ प्रत्यावर्तनता ३१७ प्रश्रेणी प्रत्येकबुद्ध ३२१ प्रसन्नचंद्र प्रत्येकबुद्धसिद्ध ३११ प्रसन्ना प्रदेशी प्रसाधनघर प्रद्युम्न १३८ प्रसारित प्रपंचा ३५३ प्रसूति प्रभव प्रसेनजित ११, ११६ प्रस्थ प्रभावती' ३३१ प्राकार प्रभास १९,१२१,१२५,१८७ १०,३८,७१ प्रभासतीर्थ प्राग्भारा ३५३ १२१ प्रमत्त २४७ प्राघूर्णक-भक्त प्राचीनवात प्रमाण १२५, १९५, ३२५, ३३१ प्राण प्रमाणांगुल प्राणत प्रमाणोपेताहारी ... २६७ प्राणवध प्रमाद प्राणातिपात-विरमण प्रमादस्थान प्राणायु ३२१ प्रमादाप्रमाद प्रमेयरत्नमंजूषा प्राणीसमूह प्रादुष्करण प्रयुत ११६, ३२९ प्राभृत - २४१ प्रयुतांग ११६, ३२९, ३३४ प्राभृतिका प्रयोग ९३, ९८ प्रामित्य १९६ प्रवचन . ३२८ प्रायःवैधोपनीत ३३६ प्रश्चनमाता .... १६७ प्रायःसाधोपनीत प्रवर्तिनी २६२, २६४. प्रायश्चित्त १४,२१५,२५८,२५९, अवाल . ____ २७३,२९१,२९५ ur v ३३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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