Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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दशाश्रुतस्कन्ध
२२९ दशमी के दिन जम्भिक ग्राम के बाहर ऋजुवालिका नदी के किनारे के खंडहर के समान प्राचीन चैत्य के पास के श्यामाक गृहपति के खेत में स्थित शालवृक्ष के नीचे हस्तोत्तरा नक्षत्र का योग होने पर महावीर को केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न होना, भगवान् का अस्थिक ग्राम में प्रथम वर्षावास-चातुर्मास करना, तदनन्तर चम्पा, पृष्ठचम्पा, वैशाली, वाणियग्राम, राजगृह, नालन्दा, मिथिला, भद्रिका, आलभिका, श्रावस्ती, प्रणीतभूमि ( वज्रभूमि), मध्यमा-पावा में वर्षावास करना, अन्तिम वर्षावास के समय मध्यमा-पावा नगरी में कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि को स्वाति नक्षत्र का योग होने पर भगवान् का ७२ वर्ष की अवस्था में मुक्त होना।
श्रमण भगवान् महावीर काश्यप गोत्र के थे । उनके तीन नाम थे : वर्धमान, श्रमण और महावीर । महावीर के पिता के भी तीन नाम थे : सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी। महावीर की माता वासिष्ठ गोत्र की थी। उसके भी तीन नाम थे : त्रिशला, विदेहदिन्ना और प्रियकारिणी। महावीर के चाचा (पितृव्य) का नाम सुपार्श्व (सुपास), ज्येष्ठ भ्राता का नाम नन्दिवर्धन, भगिनी का नाम सुदर्शना और पत्नी का नाम यशोदा था। यशोदा कौडिन्य गोत्र की थी। महावीर की पुत्री के दो नाम थे : अनवद्या ( अणोजा) और प्रियदर्शना । प्रियदर्शना की पुत्री के भी दो नाम थे : शेषवती और यशस्वती।
भगवान् महावीर के संघ में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं की संख्या इस प्रकार थी:-१४००० श्रमण, ३६००० श्रमणियाँ, १५६००० श्रावक, ३१८००० श्राविकाएँ, ३०० चतुर्दश-पूर्वधर, १३०० अवधिज्ञानी, ७०० केवलज्ञानी, ७०० वैक्रियलब्धिधारी, ५०० विपुलमति-ज्ञानी-मनःपर्ययज्ञानी, ४०० वादी।
भगवान् पार्श्वनाथ के जीवन में पाँच प्रसंगों पर विशाखा नक्षत्र का योग हुआ था : १. विशाखा नक्षत्र में च्युत होकर गर्भ में आना, २. विशाखा नक्षत्र में जन्म होना, ३. विशाखा नक्षत्र में प्रव्रज्या ग्रहण करना, ४. विशाखा नक्षत्र में केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न होना, ५. विशाखा नक्षत्र में निर्वाण होना ।
भगवान् अरिष्टनेमि के उपर्युक्त पाँच प्रकार के जीवन प्रसंगों का सम्बन्ध चित्रा नक्षत्र से है। प्रस्तुत सूत्र में भगवान् महावीर के जीवन-चरित्र की भाँति पार्श्व एवं अरिष्टनेमि के जीवन-चरित्र पर भी प्रकाश डाला गया है किन्तु उतने विस्तार से नहीं। इसी प्रकार चार उत्तराषाढ़ एवं एक अभिजित-इन
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