Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कल्पसूत्रीय स्थविरावली इस प्रकार है :१. सुधर्म १३. वज्र
२४. विष्णु २. जम्बू १४. श्रीरथ
२५. कालक ३. प्रभव १५. पुष्यगिरि
२६. सम्पलितभद्र ४. शय्यम्भव
१६. फल्गुमित्र २७. वृद्ध ५. यशोभद्र
१७. धनगिरि २८. संघपालित ६. संभूतिविजय १८. शिवभूति २९. श्रीहस्ती ७. स्थूलभद्र १९. भद्र
३०. धर्म ८. सुहस्ती २०. नक्षत्र
३१. सिंह ९. सुस्थितसुप्रतिबुद्ध २१. रक्ष
३२. धर्म १०. इन्द्रदिन्न २२. नाग
३३. शाण्डिल्य ११. दिन्न २३. जेहिल
३४. देवर्द्धिगणी १२. सिंहगिरि श्रोता और सभा: ___ मंगलाचरण के रूप में अर्हन् आदि की स्तुति करने के बाद सूत्रकार ने सूत्र का अर्थ ग्रहण करने की योग्यता रखने वाले श्रोता का चौदह दृष्टान्तों से वर्णन किया है। वे दृष्टान्त ये हैं : १. शैल और घन, २. कुटक अर्थात् घड़ा, ३. चालनी, ४. परिपूर्णक, ५. हंस, ६, महिष, ७. मेष, ८. मशक, ९. जलौका, १०. बिडाली, :११. जाहक, १२. गौ, १३. भेरी, १४. आभीरी। एतद्विषयक गाथा इस प्रकार है :
सेल-घण-कुडग-चालिणि, परिपुण्णग-हंस-महिस-मेसे य ।
मसग-जलूग-बिराली, जाहग-गो-भेरी-आभीरी ।। इन दृष्टान्तों का टीकाकारों ने विशेष स्पष्टीकरण किया है।
श्रोताओं के समूह को सभा कहते हैं। सभा कितने प्रकार की होती है ? इस प्रश्न का विचार करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि सभा संक्षेप में तीन प्रकार की होती है : ज्ञायिका, अज्ञायिका और दुर्विदग्धा । जैसे हंस पानी को छोड़कर दूध पी जाता है उसी प्रकार गुणसम्पन्न पुरुष दोषों को छोड़कर गुणों को ग्रहण कर लेते हैं। इस प्रकार के पुरुषों की सभा ज्ञायिका कहलाती है। जो श्रोता मृग, सिंह और कुक्कुट के बच्चों के समान प्रकृति से मधुर होते हैं तथा असंस्थापित रत्नों के समान किसी भी रूप में स्थापित किये जा सकते हैं-किसी भी मार्ग में लगाये जा सकते हैं वे अज्ञायिक हैं। इस प्रकार के श्रोताओं की सभा
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