Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास एए उ अहोरत्ता नियमा जीवस्स गब्भवासंमि ।
हीणाहिया उ इत्तो उवघायवसेण जायंति ॥ ५ ॥ योनि के स्थान, आकार, गर्भधारण की योग्यता आदि का वर्णन करते हुए ग्रन्थकार ने बताया है कि स्त्री की नाभि के नीचे फूल की नाली के आकार की दो शिराएँ होती हैं। इन शिराओं के नीचे योनि होती है। यह योनि अधोमुख एवं कोशाकार होती है। इसके नीचे आम की मंजरी के समान मांस की मंजरी होती है जो ऋतुकाल में फूट जाती है जिससे उससे रक्तबिन्दु गिरते हैं। ये रक्तबिन्दु जब शुक्रमिश्रित होकर कोशाकार योनि में प्रविष्ट होते हैं तब स्त्री जीवोत्पाद के योग्य होती है। इस प्रकार की योनि बारह मुहूर्त तक ही गर्भधारण करने योग्य रहती है। उसके बाद उसकी गर्भधारण की योग्यता नष्ट हो जाती है। गर्भ में स्थित जीवों की संख्या अधिक से अधिक नौ लाख होती है :
आउसो ! इत्थीए नाभिहिट्ठा सिरादुगं पुप्फनालियागारं। तस्स य हिट्ठा जोणी अहोमुहा संठिया कोसा ॥९॥ तस्स य हिट्ठा चूयस्स मंजरी तारिसा उ मंसस्स । ते रिउकाले फुडिया सोणियलवया विमुंचति ॥ १० ॥ कोसायारं जोणी संपत्ता सुक्कमीसिया जइया । तइया जीवुववाए जोग्गा भणिया जिणिंदेहिं ।। ११ ॥ बारस चेव मुहुत्ता उवरिं विद्धंसं गच्छई सा उ । जीवाणं परिसंखा लवखपुहुत्तं य उक्कोसं ।। १२॥
प्रायः ५५ वर्ष के बाद स्त्री की योनि गर्भधारण करने योग्य नहीं रहती तथा ७५ वर्ष के बाद पुरुष वीर्यहीन हो जाता है :
पणपण्णाय परेणं जोणी पमिलायए महिलियाणं ।
पणसत्तरीय परओ पाएण पुमं भवेऽबीओ ॥ १३ ॥ रक्तोत्कट स्त्री के गर्भ में एक साथ अधिक से अधिक नौ लाख जीव उत्पन्न होते हैं, बारह मुहूर्त तक वीर्य सन्तान उत्पन्न करने योग्य रहता है, उत्कृष्ट नौ सौ पिता की एक संतान होती है, गर्भ की स्थिति उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है:
रत्तुक्कडा उइत्थी लक्खपुहुत्तं य बारस मुहुत्ता । पिउसंख सयपुहुत्तं बारस वासा उ गब्भस्स ॥ १५ ॥
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