Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
'तन्दुल वैचारिक
३५३
दक्षिण कुक्षि में रहने वाला जीव पुरुष होता है, वाम कुक्षि में रहने वाला जीव स्त्री होता है और दोनों के मध्य में रहने वाला जीव नपुंसक होता है । तिर्यञ्चों की गर्भस्थिति उत्कृष्ट आठ ही वर्ष की होती है :
दाहिणकुच्छी पुरिसस्स होइ वामा उ इत्थियाए य । उभयंतरं नपुंसे तिरिए अट्ठेव वरिसाई || १६ ||
जब अल्प वीर्य तथा बहु रक्त होता है तब स्त्री की उत्पत्ति होती है और जब अल्प रक्त तथा बहु वीर्य होता है तत्र पुरुष की उत्पत्ति होती है। शुक्र व शोणित के समान मात्रा में होने पर नपुंसक उत्पन्न होता है । स्त्री के रक्त के - जम जाने पर बिम्ब ( मांसपिण्ड ) उत्पन्न होता है :
अप्पं सुक्कं बहु अयं इत्थी तत्थ जायइ | अप्पं अयं बहुं सुक्कं पुरिसो तत्थ जायइ || २२ ॥ दुहं विराणं तुलभावे नपुंसगो । इत्थीओयसमाओगे बिंबं तत्थ जायइ || २३ |
गर्भ से उत्पन्न प्राणी की निम्नोक्त दस अवस्थाएँ होती हैं : १. बाला, २. क्रीडा, ३. मन्दा, ४० बला, ५. प्रज्ञा, ६. हायनी, ७. प्रपञ्चा, ८. प्राग्भारा, ९. मुन्मुखी, १० शायिनी । प्रत्येक अवस्था दस वर्ष की होती है : आउसो ! एवं जायरस जंतुरस कमेण दस दसाओ एवमा हिन्जंति, तं जहा
बाला किड्डा मंदा बला य पण्णा य हायणि पवंचा ।
पन्भारा मुम्मुही सायणी दसमा य कालदसा ॥ ३१ ॥
ग्रन्थकार ने इन दस दशाओं का परिचय दिया है । युगलधर्मियों के अंगप्रत्यंगों का साहित्यिक भाषा में वर्णन करते हुए संहनन व संस्थान का विवेचन किया है। सौ वर्ष जीने वाला मनुष्य अपने जीवनकाल में साढ़े बाईस वाह तन्दुल खाता है, साढ़े पाँच घड़े मूँग खाता है, चौबीस सौ आढक स्नेह यानी घी-तेल खाता है तथा छत्तीस हजार पल नमक खाता है : तं एवं अद्धतेवीसं तंदुल वाहे भुंजतो अछट्टे मुग्गकुंभे भुंजइ अद्धछट्ठे मुग्गकुंभे भुंजंतो चवीसं हा ढगसयाइं भुंजइ चउवीसं णेहाढगसयाई भुंजतो छत्तीसं लवणपलसहस्साई भुंजइ ।
एक वाद तंदुल में चार अरब साठ करोड़ और अस्सी लाख दावे होते हैं :
२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org