Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अमरिंदनरिंदमुणिंदवंदिरं वंदिउं महावीरं । कुसलाणुबंधि बंधुरमञ्झयणं कित्तइस्सामि ॥९॥ चउसरणगमण दुक्कडगरिहा सुकडाणुमोअणा चेव । एस गणो अगवरयं कायव्वो कुसलहेउत्ति ॥ १० ॥ अरिहंत सिद्ध साहू केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो । एए चउरो चउगइहरणा सरणं लहइ धन्नो ॥ ११ ॥
अन्तिम गाथा में वीरभद्र का उल्लेख होने के कारण यह प्रकीर्णक वीरभद्र की कृति मानी जाती है:
इअ जीवपमायमहारिवीरभदंतमेअमज्झयणं । झाएसु तिसंझमवंझकारणं निव्वुइसुहाणं ।। ६३ ।।
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