Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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द्वितीय प्रकरण अनुयोगद्वार
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अनुयोग का अर्थ है व्याख्यान अथवा विवेचन । अनुयोग, भाष्य, विभाषा, वार्तिक आदि एकार्थक हैं । अनुयोगद्वार सूत्र' में आवश्यक सूत्र का व्याख्यान है। प्रसंग से इसमें जैन परम्परा के कुछ मूलभूत विषयों का भी व्याख्यान किया गया है। इसके लिए सूत्रकार ने निक्षेप-पद्धति का विशेष उपयोग किया है। विभिन्न द्वारों अर्थात् दृष्टियों से किसी वस्तु का विश्लेषण करने का नाम निक्षेप है। आचार्य भद्रबाहुकृत आगमिक नियुक्तियाँ भी इसी शैली में हैं।
प्रस्तुत सूत्र में निम्न विषयों का समावेश है : आवश्यक, श्रुत, स्कन्ध और अध्ययन के विविध निक्षेप, अनुयोग के उपक्रमादि चार द्वार, उनका विवरण यथा उपक्रम का अधिकार, आनुपूर्वी का अधिकार, समवतार का अधिकार आदि, अनुगम का अधिकार, नाम के दस भेद, औदयिक आदि छः भाव, सप्तस्वर, अष्टविभक्ति, नवरस आदि का स्वरूप, प्रमाण, अंगुल, पल्योपम आदि का वर्णन, पांच प्रकार के शरीर, गर्भज मनुष्यों की संख्या, सप्तनय का १-(अ) मूल-शान्तिलाल व. शेठ, गुरुकुल प्रिंटिंग प्रेस, ब्यावर, वि.
सं. २०१०. . (आ) अमोलकऋषिकृत हिन्दी अनुवादसहित-सुखदेवसहाय ज्वाला
प्रसाद जौहरी, हैदराबाद, वी. सं. २४४६. (इ) उपाध्याय आत्मारामकृत हिन्दी अनुवादसहित-श्वेताम्बर स्थानक
वासी जैन कॉन्फरेन्स, बम्बई (पूर्वार्ध); मुरारीलाल चरणदास जैन,
पटियाला, सन् १९३१ ( उत्तरार्ध). (ई) मलधारी हेमचन्द्रकृत वृत्तिसहित-रायबहादुर धनपतसिंह,
कलकत्ता, सन् १८८०; देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, सन् १९१५-१६; आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२४;
केशरबाई ज्ञानमन्दिर, पाटन, सन् १९३९. (उ) हरिभद्रकृत वृत्तिसहित-ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर
संस्था, रतलाम, सन् १९२८.
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