Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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व्यवहार
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च्छेदक को हेमन्त एवं ग्रीष्मऋतु में कम से कम दो अन्य साधुओं के साथ रहने पर ही विचरना चाहिए। वर्षाऋतु में आचार्य एवं उपाध्याय के साथ दो एवं गणावच्छेदक के साथ तीन अन्य साधुओं का होना अनिवार्य है।
ग्रामानुग्राम विचरते हुए अपने गण के आचार्य आदि की मृत्यु हो जाए तो अन्य गण के आचार्य आदि को प्रधानरूप से अंगीकार कर रागद्वेष से रहित होकर भ्रमण करना चाहिए । यदि कोई योग्य आचार्य उस समय उपलब्ध न हो सके तो अपने मे से किसी योग्य साधु को आचार्यादि की पदवी देकर उसकी आज्ञा के अनुसार रहना चाहिए । योग्य साधु के अभाव में जहाँ तक अपने अमुक साधर्मिक साधु न मिल जाएँ वहाँ तक रास्ते में एक रात्रि से अधिक न ठहरते हुए बराबर विहार करते रहना चाहिए । रोगादि विशेष कारणों से अधिक ठहरना पड़े तो कोई हर्ज नहीं । बिना कारण के अधिक रहने पर उतने ही दिन के छेद अथवा परिहार के प्रायश्चित्त का भागी होना पड़ता है। वर्षाऋतु के दिनों में आचार्यादि का अवसान होने पर भी यही नियम लागू होता है। इस प्रकार की विशेष परिस्थिति में वर्षाऋतु में भी यदि विहार करना पड़े तो कल्प्य है।
आचार्य उपाध्यायादि अधिक बीमार हों और उन्हें अपने जीवन की विशेष आशा न हो तो अपने पास के साधुओं को बुलाकर कहें कि आर्यो! मेरी आयु पूर्ण होने के बाद अमुक साधु को अमुक पदवी प्रदान करना। उनकी मृत्यु के बाद यदि वह साधु योग्य प्रतीत हो तो उसे उस पद पर प्रतिष्ठित करना चाहिए । योग्य प्रतीत न होने की दशा में अन्य योग्य साधु को वह पदवी प्रदान करनी चाहिए । अन्य योग्य साधु आचारांगादि पढ़कर कुशल न हो जाए तब तक आचार्यादि के सुझाव के अनुसार किसी भी साधु को अस्थायीरूप से किसी भी पद पर प्रतिष्ठित किया जा सकता है। दूसरे योग्य साधु के प्रवचन-कुशल हो जाने पर अस्थायी पदाधिकारी को तुरन्त अपने पद से अलग हो जाना चाहिए। वैसा न करने पर उसे छेद अथवा पारिहारिक तप का भागी होना पड़ता है।
दो साधु साथ में विचरते हों तो उन्हें बराबरी के न रहते हुए योग्यतानुसार छोटा-बड़ा होकर रहना चाहिए । इसी प्रकार दो गणावच्छेदकों, दो आचार्यों, दो उपाध्यायों को भी समानता का दावा करते हुए साथ रहना अकल्प्य है । अनेक साधुओं, गणावच्छेदकों, आचार्यों एवं उपाध्यायों को भी इसी प्रकार बराबरी के दावे के साथ एक साथ न रहते हुए योग्यतानुसार छोटे-बड़े की स्थापना कर
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