Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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दशाश्रुतस्कन्ध
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सम्बन्धित पाँच हस्तोत्तरों ( उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र ) का निर्देश किया गया है : १. हस्तोत्तर में देवलोक से च्युति और गर्भ में आगमन, २. हस्तोत्तर में गर्भ-परिवर्तन, ३. हस्तोत्तर में जन्म, ४. हस्तोत्तर में अनगार-धर्म-ग्रहण अर्थात् प्रव्रज्या और ५. हस्तोत्तर में ही केवलज्ञान- केवलदर्शन की प्राप्ति । भगवान् महावीर का परिनिर्वाण स्वाति नक्षत्र में हुआ था । एतद्विषयक मूल पाठ इस प्रकार है : 'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरा होत्था, तं जहाहत्थुत्तराहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कते । हत्थुत्तराहिं गन्भाओ गब्र्भ साहरिए । हत्थुत्तराहिं जाए। हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवईए । हत्थुत्तराहिं अनंते अणुत्तरे निव्वाग्घाए निरावरणे कसिणे "पडिपुणे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे । साइणा परिनिव्वुए भगवं जाव भुज्जो उवदंसेति त्ति बेमि । आज कल्पसूत्र के नाम से जिस ग्रंथ का जैन समाज में प्रचार एवं प्रतिष्ठा है, वह इसी संक्षिप्त पाठ अथवा उद्देश -का पल्लवित रूप है । यहाँ पर कल्पसूत्र का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करना अप्रासंगिक न होगा क्योंकि यह वास्तव में दशाश्रुतस्कन्ध का ही एक अंग है ।
कल्पसूत्र में सर्वप्रथम भगवान् महावीर का जीवन चरित्र प्रस्तुत किया गया है जो उपर्युक्त पाँच हस्तोत्तरों से सम्बन्धित है । इसके बाद मुख्य रूप से पार्श्व, अरिष्टनेमि और ऋषभ - इन तीन तीर्थकरों की जीवनी दी गई है । अन्त में स्थविरावली भी जोड़ दी गई है । अन्त ही अन्त में सामाचारी ( मुनि-जीवन के नियम ) पर भी थोड़ा-सा प्रकाश डाला गया है । "
भगवान् महावीर के जीवन चरित्र में निम्न बातों का समावेश किया गया 'है : आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की लगभग मध्यरात्रि के समय हस्तोत्तरा नक्षत्र में भगवान् महावीर का ब्राह्मणकुण्डग्राम में रहने वाले कोडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी जालन्धरगोत्रीय देवानन्दा ब्राह्मणी की कुश्चि में गर्भ-रूप में उत्पन्न होना, देवानन्दा का चौदह महास्वप्न देखकर जाग जाना ( १४ स्वप्नः - १. गज, २. वृषभ, ३. सिंह, ४. अभिषेक, ५. माला, ६. चन्द्र, ७. सूर्य, ८. ध्वज, ९. कुम्भ, १०. पद्मसरोवर, ११. सागर,
१. विद्वानों की मान्यता है कि कल्पसूत्र में आने वाले चौदह स्वप्न आदि से सम्बन्धित आलंकारिक वर्णन का कुछ भाग, स्थविरावली और सामाचारी का कुछ अंश बाद में जोड़ा गया है। देखिए — मुनि पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित कल्पसूत्र, प्रास्ताविक, पृ० ९-११ ( प्रका० साराभाई मणिलाल नवाब ) ।
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