Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति बालक की दीर्घायु कामना के लिए दो गोल पत्थरों के टुकड़े तीर्थकर के कानों में बजाये जाते हैं (११२-११४)।
इन्द्र तीर्थकर के जन्म का समाचार पाकर अपने सेनापति नैगमेषी' को बुलाकर सुधर्मा सभा में घोषणा करने को कहता है और पालक विमान सज करने का आदेश देता है ( ११५-११६)। इन्द्र का परिवारसहित आगमन होता है
और वह पांडुक वन में अभिषेक-शिला पर तीर्थकर को अभिषेक के लिए ले जाता है ( ११७)। ईशानेन्द्र आदि देवों का आगमन होता है एवं जलधारा से बालक का अभिषेक किया जाता है (११८-१२२)। बालक को माँ के पास वापिस पहुँचा दिया जाता है ( १२३)।
छठा वक्षस्कार
जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र ( वर्ष ) हैं-भरत, ऐरावत, हैमवत, हिरण्यवत, हरि, रम्यक और महाविदेह । जम्बूद्वीप में तीन तीर्थ हैं-मागध, वरदाम और प्रभास (१२५)।
सातवाँ वक्षस्कार :
__ जम्बूद्वीप में दो चन्द्र, दो सूर्य, छप्पन नक्षत्र और १७६ महाग्रह प्रकाश करते हैं (१२६)। आगे सूर्यमण्डलों की संख्या आदि (१३०-१३२), एक मुहूर्त में गमन (१३३), दिन और रात्रि का मान (१३४ ), सूर्य के आतप का क्षेत्र (१३५), सूर्य की दूरी आदि (१३६-१३८), सूर्य का ऊर्ध्व और तिर्यक् ताप (१३९-१४०), चन्द्रमण्डलों की संख्यादि (१४३( १४७ ), एक मुहूर्त में चन्द्र की गति ( १४८), नक्षत्र-मंडल आदि (१४९) पर प्रकाश डाला गया है एवं सूर्य के उदयास्त के संबंध में कुछ मिथ्या धारणाएँ बताई गई हैं ( १५०)। __ संवत्सर पाँच होते हैं-नक्षत्र, युग, प्रमाण, लक्षण व शनैश्चर। इन सबके अवान्तर भेदों का उल्लेख किया गया है (१५१)। संवत्सर के मास, पक्ष आदि का उल्लेख करते हुए बताया है कि करण ११ होते हैं ( १५२-३)। आगे
१. मथुरा में नेगमेष की मूर्तियाँ मिली हैं। कल्पसूत्र ( २.२६ ) में भी
हरिणेगमेषी का उल्लेख है। यहाँ उसने देवानन्दा ब्राह्मणी को अवस्वापिनी विद्या से सुलाकर महावीर का हरण किया था।
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