Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्रज्ञापना
आर्य दो प्रकार के होते हैं--ऋद्धिप्राप्त और अनृद्धिप्राप्त । ऋद्धिप्राप्त— अरहंत, चक्रवर्ती, वलदेव', वासुदेव, चारण और विद्याधर । अनृद्धिप्राप्त नौ प्रकार के होते हैं--क्षेत्रार्य, जात्यार्य, कुलार्य, कर्मार्य, शिल्पार्य, भाषार्य, ज्ञानार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य ।
क्षेत्रार्य साढ़े पच्चीस (२५३) देश के माने गये हैं
राजधानी
राजगृह
चम्पा
ताम्रलिप्ति
कांचनपुर
वाराणसी
साकेत
जनपद
१ मगध
२ अंग
३ बंग
४ कलिंग
५ काशी
६ कोशल
७ कुरु
८ कुशावर्त
९ पांचाल
१० जांगल
११ सौराष्ट्र
१२ विदेह
१३ वत्स
१४ शांडिल्य
१५. मलय
१६ मत्स्य
१७ वरणा
गजपुर
शौरिपुर
कांपिल्यपुर
अहिच्छत्रा
द्वारवती
मिथिला
कौशांबी
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नंदिपुर
भद्रिलपुर
वैराट
अच्छा
९१
१. अरहंत, चक्रवर्ती और बलदेव के विषय में कहा गया है कि ये तुच्छ, कुलों में जन्म धारण नहीं करते; हरिवंश भादि विशुद्ध कुलों में
दरिद्र, कृपण, भिक्षुक और ब्राह्मण उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, क्षत्रिय, ही उत्पन्न होते हैं— कल्पसूत्र, २५.
२. इन स्थानों की पहचान के लिये देखिए -- जगदीशचन्द्र जैन, लाइफ इन ऐंशियेष्ट इण्डिया, पृ० २५० आदि तथा भारत के प्राचीन जैन तीर्थं ।
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