Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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प्रज्ञापना
कर्मार्य-दौयिक ( कपड़े बेचने वाले ), सौत्रिक ( सूत बेचने वाले), कार्पासिक ( कपास बेचने वाले ), सूत्रवैकालिक, भांडवैकालिक, कोलालिय (कुम्हार ), नरवाहनिक ( पालकी आदि उठाने वाले)।
शिल्पार्य-तुन्नाग (रफू करने वाले ), तन्तुवाय (बुनने वाले ), पट्टकार (पटवा), देयडा (दृतिकार, मशक बनाने वाले), वरुट्ट (पिंछी बनाने वाले), छविय (चटाई आदि बुनने वाले ), काष्ठपादुकाकार (लकड़ी की पादुका बनाने वाले), मुंजपादुकाकार, छत्रकार, वज्झार ( वाहन बनाने वाले), पोत्थकार (पूँछ के बालों से झाड़ आदि बनाने वाले, अथवा मिट्टी के पुतले बनाने वाले), लेप्यकार, चित्रकार, शंखकार, दंतकार, भांडकार, जिज्झगार (?), सेल्लगार (भाला बनाने वाले ), कोडिगार (कौड़ियों की माला आदि बनाने वाले ) ।
भाषार्य-अर्धमागधी भाषा बोलने वाले। ब्राह्मी लिपि लिखने के प्रकार-ब्राह्मी, यवनानी, दोसापुरिया,
१. अनुयोगद्वार सूत्र (पृ. १३६ अ) में तृणहारक, काष्टहारक और पत्र
हारक की भी गणना की गई है। तस्वार्थभाष्य (३.१५) में यजन, याजन, अध्ययन, अध्यापन, प्रयोग, कृषि, लिपि, वाणिज्य, योनिपोषण से आजीविका चलानेवालों को कर्म-आर्य में गिना है। उत्तरकालवी जैन ग्रन्थों में मयूर-पोषक, नट, मछुए, धोबी आदि को कर्म-जुंगित कहा है । अनुयोगद्वार सूत्र में कुम्भकार, चित्तगार, गंतिक (कपड़ा सीने वाला) कम्मगार, कासव (नाई ) की पाँच मूल शिल्पकारों में गणना की . गई है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति (पृ० १९३) में नव नारु में कुम्भार, पटेल, सुनार, सूपकार, गन्धर्व, नाई, माली, काछी, तंबोली, तथा नव कार में चमार, कोल्हू आदि चलाने वाला, गांछी, छींपी, कसारा, दर्जी, गुआर (ग्वाला), भील और धीवर की गणना की गई है। उत्तरकालवी जैन
प्रन्थों में चमार, धोबी और नाई आदि को शिल्प-जुंगित कहा है। ३. जैन परम्परा के अनुसार ऋषभदेव ने अपने दाहिने हाथ से यह लिपि
अपनी पुत्री ब्राह्मी को सिखाई थी, इसलिए इसका नाम ब्राह्मी पड़ा (आवश्यकचूर्णि, पृ० १५६)। भगवती सूत्र (पृ. ७) में णमो बंभीए लिवीए' कहकर ब्राह्मी लिपि को नमस्कार किया गया है। इससे मालूम होता है कि जैन आगम पहले इसी लिपि में लिखे गये थे।
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