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(२०) नास्तिक-आपने प्रिय पाठकगणको जो सुनाया सो मुन लिया। आपने प्रिय पाठकगणको क्यों याद किया ? क्या मध्यस्थ टोलतेहो ? कोई जरुरत नहीं मुझेही आप मध्यस्थ समड़ी। मैं तत्त्वज्ञानकी प्राप्ति करनेको उपस्थित हं नकि वितंडा वाद करनेको । इसलिये आप मुझे यह बतलायें कि भृताका चुनन्य कार्य नहीं है किंतु आत्याकाही गुण चैतन्य है। इस बातको किस प्रमाणसे सावित करते हो सो जरा मुना दीजिये।
__ आस्तिक-प्रथम भूतोंका कार्य चैतन्य किसी सूरत नहीं होसक्ता । बतलाइये ! किस प्रमाणसे सावित करते है । अवल प्रथम प्रत्यक्ष प्रमाणसे तो होही नहीं। अब रहा. सा व्यवहारिक प्रत्यक्ष (इंद्रिय जन्य प्रत्यक्ष ज्ञानका नामहै ) सो इस्की अतीद्रिय विषय में प्रवृत्तिही नहीं होसक्ती है, और चैतन्य अरपी होनेसे अतींद्रिय ( इंद्रियों के विषयमें न आसके ऐसा) है । फिर आप कैसा कह सकते हैं कि चैतन्य प्रत्यक्ष प्रमाणसे भूतोंका कार्य है। क्योंकि सां व्यवहारिक प्रत्यक्ष स्वयोग्य सनिहित और रुपी पदार्थको ग्रहण करता है सो चैतन्य अमूर्त्त ( अरुपी) पदार्थ है। इसलिये इस्को ग्रहण योग्य नहीं होसकता है। ___ नास्तिक-" भुता ना महं काय " अर्थात् भूतोंका मैं कार्य हूं इस प्रकारसे भूतोंका कार्य चैतन्य प्रत्यक्ष ग्राह्य है ।