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( १९) वातको जतगते है। प्रिय पाठकगण । नास्तिकने कहाया कि "शरीर होताहै तो चैतन्य होताहै और शरीरका अभाव होता? तो उधर चैतन्यकाभी अभाव उपलब्ध होताहै" इस अफलसे ग्विलाफ वातको कौन मजूर करेगा । क्योंकि अगर चैतन्यका सारण शरीरहै तो फिर मन्याले मूगाले और सोये हुए मागिम पाच भूत करसे युक्त (वायु तेज सहित) शरीरके होनेपरभी चेमा चैतन्य क्या नहीं मालुम देता है ? कई गोटे शरीरपाले पक्रफ होते हैं और कई पतले गरीरवाले अकल मट होते है । इसलिये अवय व्यतिरेक तथा चैतन्य गरीरका वाग्य नहीं होसक्ता है।
क्योंकि जरा देख लेवें । आग लकडीका कार्य है तो जहा लफडीये पहोतसी पाइजाती है । पहां आग ज्यादा भडक उठतो है और जहा उकडी थोडी इकहो को होती है पहा आगभी गोडीही पैदा होती है। मतलय घोडी लाडी मिल्नेपर पोडी और बहोत मीय मिटनेपर होन भाग होती है। पांकि भाग र कडीयोरा कार्य है। इसी तरहसे मामानको आप शारीरका कार्य मानने हो तो निस्सा शरीर पर (मोटा) है उम्पो ज्यादान होना चाहिये । और निका शरीर का उम्शे कम शान होना चाहिये, मगर इससे वि. परीत भी कहा जगहपर देयने है । इसलिये नास्निग कहना विलकुल स्याहै।