________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 3 "द्रव्य भाव शुचि भाव धरिने, हरखे देहरे जइये रे / दहतिक पण अहिगम साचवतां, एकमना धुरिथइये रे ? __ मन्दिर जाते रास्ते में दूसरी संसार की झंझटों में न पडकर सीधा मंदिर पहुंचना चाहिये। मंदिर में जाने के बाद सब जगह नजर डालते कहीं धूल कचरा या कोई भी अशुद्धि मालूम हो तो स्वयं दूर करें या मंदिर के पूजारी को कह कर दूर करावे / दर्शन करते भगवान के नजदीक न जाना बल्के अवग्रह के बाहर दूर खडे रह कर प्रार्थना करे / ___ पुरुष भगवान् के दाहिनी (जीमणी) तर्फ और स्त्री बायी (डाबी) तर्फ खडे रहकर दर्शन करे / उस वक्त यह भी ध्यान रहना चाहिये कि कोई दूसरा दर्शन करता हो उसको हरकत न पहुंचे वैसे खडे रहना चाहिये और कोई आगे चैत्यवंदन स्तवनादि बुलंद आवाज से बोलता हो तो खुद अपने दिल में ही पढे, कारण कि ऐसा न करने से गाने वाले की एकाग्रता में भंग पहुंचने का संभव है। ___ मंदिर में जहां तक हो सके शांति रहनी चाहिये / न किसी से संसारिक बात चीत करे और न मुख से गाली गलोज बोले / दर्शन करने वाले कई एक महाशय मंदिर में हा हू मचा देते हैं। एक कहता है मैं पहले पूजा करूंगा दूसरा कहता है मैं करूंगा, पालिताणा जैसे तीर्थ स्थानो में मंदिर में