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विषय के बारे में स्पष्टीकरण माँगने पर मुझसे चर्चा कर उन्हें सूचित करने, उनसे आयी सामग्री को समय से कम्पोज कराने, उस सामग्री में परिवर्धन, परिवर्तन व संशोधन करने, अपने लेख लिखकर देने आदि के बहाने न मिला होता, तो यह पुस्तक निश्चित रूप से आप-सब के हाथों इस रूप में न पहुँच पाती। ___और अन्त में जैनधर्म की परिचयात्मक यह कृति आप-सब को इस भाव से समर्पित कि यदि जैनधर्म के विस्तीर्ण फलक की थोड़ी-सी भी सम्यक् जानकारी अपने पाठक को करा सकी, तो निश्चय ही यह इसके प्रकाशन की, इसके लेखकों के अथक श्रम की व भारतीय ज्ञानपीठ के संकल्प की सार्थकता होगी।
-वृषभ प्रसाद जैन
12 :: जैनधर्म परिचय
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