Book Title: Jain Dharm Parichay
Author(s): Rushabhprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमा के भीतर नहीं मिले, 2. मिले भी तो उन्होंने समय-सीमा के भीतर हमारी अपेक्षा के अनुरूप प्रस्तुति नहीं की या हम उनसे यत्न करने पर भी न ले पाये इसके बावजूद, 3. एक खंडीय पुस्तक के कलेवर की सीमा के कारण भी हमें कई विषय छोड़ देने पड़े। इस पुस्तक में हमने जैनधर्म और जैन जीवन से जुड़े विविध पक्षों को रखने का जो प्रयास किया है, उसमें हमारा यह भाव भी रहा है कि पन्थवाद या विवाद या असहमति के विषय इस पुस्तक में न जाने पाएँ तथा विचार भी जैनत्व की सभी धाराओं से इसमें आएँ, इसलिए इसके लेखक भी जैनों की प्राय: सभी धाराओं से लिये गए हैं, हालाँकि मैं यह भी मानता हूँ कि सभी लेखों में ऐसा हो न पाया है। चूँकि मैं यह मानता हूँ कि प्रत्येक लेखक स्वतन्त्र चेता है और उसके लेखन की अपनी स्वायत्तता है, इसलिए प्रत्येक लेख में दिये गए लेखक के विचार अपने हैं। इसके बाबजूद, हमारी कोशिश यह रही है कि यह पुस्तक जैनों की समग्रता की प्रतीक-पुस्तक बने। पूरी पुस्तक वैचारिकी, इतिहास एवं संस्कृति, धर्म-दर्शन, आचार, ज्ञान-विज्ञान, कला, जैनधर्म और वैश्विक सन्दर्भ, साहित्य और विभिन्न साहित्य परम्पराओं को जैनों का अवदान आदि प्रमुख उपखंडों में बँटी है, जिसमें जैन विचार, आचार, ज्ञान-विज्ञान और सृजनात्मकता आदि की समृद्ध परम्परा का परिचय कराने की कोशिश की गई है। इस पुस्तक के प्रकाशन के पीछे भारतीय ज्ञानपीठ के पुरस्कर्ताओं के दो लक्ष्य रहे हैं- 1. जैनधर्म और जैन जीवन से जुड़े प्रायः सभी पक्ष इसमें समाहित हों; 2. यह पुस्तक जैन अजैन आम पाठक को जैनधर्म का परिचय करा सके। जो सामग्री इस पुस्तक के प्रकाशन से सामने आ रही है, उससे पहला लक्ष्य तो सीमा के साथ बहुत अंशों में पाया जा सका है। विषय-विशेषज्ञों से निरन्तर चर्चा के माध्यम से जैन धर्म-दर्शन के आचार व विचार सम्बन्धी विविध विषयों के साथ-साथ जैन जीवन से जुड़े कुछ विषयों यथासंगीत, गणित, वास्तु, ज्ञान-विज्ञान, इतिहास, भूगोल, ज्योतिष, अलंकारशास्त्र, भाषाचिन्तन, भारतीय व्याकरण परम्परा को जैनों का अवदान, जैनों के द्वारा पोषित कोश परम्परा, आयुर्वेद की परम्परा, वैश्विक सन्दर्भ में जैनधर्म आदि इसप्रकार की सामग्री हम इस संचयन में सँजो सके हैं। पुस्तक प्रकाशन का दूसरा लक्ष्य पूरी तरह उतने अंशों में नहीं पाया जा सका है, इसके पीछे संकट यह रहा कि जो विषय-विशेषज्ञ हैं, वे विषय में इतने डूबे होते हैं कि वे आम जन की भाषा में प्रायः बात ही नहीं कर पाते, इसलिए इस पुस्तक के आगे के संस्करणों में हम उस ओर इस सामग्री को लेकर बढ़ने का प्रयास करेंगे और इसका एक सरल व संक्षिप्त संस्करण शीघ्र प्रकाशित करेंगे। जैन दर्शन व न्याय सम्बन्धी गूढ़ और जटिल विषयों, यथा- तत्त्वमीमांसा, जैन न्याय की परम्परा, प्रमाण-नय-निक्षेप, कारण-कार्य विवेचना, अनेकान्त, अनेकान्तवाद बनाम स्याद्वाद, द्रव्य-गुण-पर्याय, औपशमिक आदि भावों आदि पर भी सामग्री हम इस पुस्तक 10 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only

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