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में संक्षिप्त रूप में दे पा रहे हैं, ताकि हमारे इस ग्रन्थ के सम्माननीय पाठक प्राथमिक रूप में तो यह जान सकें कि भारतीय दर्शन और न्याय की समृद्ध परम्परा से जुड़े इन गम्भीर विषयों पर जैन दृष्टि क्या रही है?...हमने भारतीय कला के क्षेत्र में जैनों के योगदान को सम्मुख रखने की दृष्टि से प्रतीक, मूर्तिकला, चित्रकला, मन्दिर व गृह-वास्तु आदि पर भी आलेख इस संचयन में दिये हैं, पर कला के साथ-साथ जैनों के साहित्यिक अवदान को भी प्रस्तुत करने से हम नहीं भूले हैं और इस दृष्टि से हमने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, कन्नड़, तमिल, मराठी व हिन्दी आदि के साहित्य पर स्वतन्त्र निबन्ध दिये हैं। यहीं, हमने जैन भक्तिकाव्य की परम्परा की विशेषता को प्रमुखतः रेखांकित किया है और यह भी बताने की कोशिश की है कि जैन भक्ति कैसे जैनेतर भक्ति से भिन्न है?...विविध विषयों को लेकर हमने जैन यात्रा साहित्य और जैन कानून पर बहुत महत्त्वपूर्ण लेख दिए हैं। इस संचयन पर मेरे काम करने से पूर्व श्री राकेश जैन शास्त्री ने भारतीय ज्ञानपीठ में रहते हुए अनेक आलेख लिख रखे थे, उनमें से कुछ को यथासम्भव परिवर्धित करते हुए इस संचयन में जोड़ा गया है।
व्यक्तिगत रूप से मैं व संस्थागत रूप में भारतीय ज्ञानपीठ कृतज्ञ है, उन सभी मनीषियों का, जिन्होंने व्यस्तता रहते हुए भी, अपने आलेख समय निकालकर इस पुस्तक के विस्तीर्ण स्वरूप को बनाने के लिए दिए हैं, क्योंकि ऐसा बहु-आयामी कार्य किसी एक व्यक्ति के द्वारा सम्भव नहीं था। इस संचयन के लेखकों में अनेक मुझसे वरिष्ठ हैं, मेरे श्रद्धेय हैं, पर अनेक मेरे अनुजवत् भी, पर सब इस संचयन को लाने में सभी मेरे ऊपर कृपालु रहे हैं। अत: मैं एक बार फिर उन सब का मनसा-वाचा आभारी हूँ। ____ मैं व्यक्तिशः आभारी हूँ भारतीय ज्ञानपीठ के पदाधिकारियों का, जिन्होंने लम्बे समय से समाज में प्रतीक्षित ऐसी पुस्तक की संकल्पना गढ़ी और यह काम कराने का उत्तरदायित्व मुझे सौंपा। मैं भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबन्धन्यासी साहू अखिलेश जैन की उस पवित्र भावना का भी सम्मान करता हूँ, जो उन्होंने पुस्तक की संकल्पना से सम्बन्धित पहली बैठक के दौरान व्यक्त की थी कि मैं इस पुस्तक को जैन-अजैन उन सभी के घरों में पहुँचाना चाहता हूँ, जो जैनधर्म और जैन जीवन-पद्धति की समृद्ध परम्परा के बारे में थोड़ी भी जानकारी हासिल करना चाहते हैं। मैं भारतीय ज्ञानपीठ के वर्तमान निदेशक और अपने मित्र श्री रवीन्द्र कालिया जी का भी उपकृत हूँ, जिन्होंने अपना स्वास्थ्य खराब होते हुए भी इस पुस्तक के त्वरित प्रकाशन के लिए लगातार चिन्ता की और जो जब-तब ही नहीं, लगातार मेरे ऊपर तगादे का पैना चलाते रहे। मैं भारतीय ज्ञानपीठ के मुख्य प्रकाशन अधिकारी डॉ. गुलाबचन्द्र जैन व जैनधर्म परिचय पुस्तक परियोजना के भारतीय ज्ञानपीठ में सहयोगी श्री राकेश जैन शास्त्री का व्यक्तिगत रूप से बहुशः आभारी हूँ, यदि इन दोनों मनीषियों का सहयोग प्रारम्भ से ही लेखक मित्रों से लगातार पत्राचार करने, उनके साथ
सम्पादकीय :: 11
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