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जिसे वह परमात्मा या अर्हत् भी कहता है, को मानता है। अत: जैन दर्शन को नास्तिक कहना युक्तिविरुद्ध है । इसे हम आगे स्पष्ट करेंगे।
जैसा कि हम पहले ही लिख आये हैं कि भारत में छः मुख्य दर्शन हैं और उनमें जैन दर्शन की भी परिगणना होती है। अब भारतीय दर्शनों के सन्दर्भ में जैन दर्शन का क्या स्थान है, इसकी विवेचना करेंगे।
भारतीय दर्शन में जैन दर्शन की प्राचीनता :
कुछ समय पूर्व तक जैन दर्शन के बारे में इस प्रकार की धारणा व्याप्त थी कि यह स्वतन्त्र दर्शन न होकर बौद्ध दर्शन की शाखा मात्र है। कुछ ने इसे हिन्दू धर्म के अन्तर्गत भी बताया, परन्तु तटस्थ अनुसंधान के कारण अब यह धारणा खंड-खंड हो गयी है। यह भी सिद्ध हो चुका है कि भगवान् महावीर या प्रभु पार्श्व इसके संस्थापक नहीं हैं, अपितु यह जैन दर्शन तो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव द्वारा प्रवर्तित है। डॉ. याकोबी के अनुसार पार्श्वनाथ जैन धर्म के संस्थापक नहीं थे। जैन परम्परा ऋषभदेव को इस धर्म का प्रवर्तक मानती है और इसके प्रमाण भी हैं।३६ ____डॉ. सर राधाकृष्णन् इसे और अधिक पृष्ट करते हैं। उनके अनुसार जैन परम्परा ऋषभदेव से अपनी उत्पत्ति होने का कथन करती है जो बहुत शताब्दियों पूर्व हुए थे। इस बात के प्रमाण भी उपलब्ध होते हैं कि ईस्वीपूर्व प्रथम शताब्दी में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजा होती थी। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जैन धर्म पार्श्वनाथ
और महावीर से पूर्व भी प्रचलित था। यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि के नाम उपलब्ध होते हैं। भागवत पुराण भी इस बात का समर्थन करता है कि ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे। डॉ. सर राधाकृष्णन् का उपर्युक्त अभिप्राय निम्नंकित है
“There is evidence to show that so far back as the first century B.C., there were people who were worshiping Rishabhadeva, the first
36 There is nothing to prore that Parshva was the founder of Jainism. Jain
tradition in unanimous in making Rishabha the first. Tirthankara (as its founder), there may be something historical in the tradition which makes him the first Tirthankara. - Indian Antiquary, Vol IX, P.163
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