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विशेषता है कि परिणामी होने पर भी दूसरे द्रव्य रूप में स्वय परिणत नहीं होता और न दूसरे द्रव्यों का अपने स्वरूप अथवा भिन्न द्रव्य स्वरूप में परिणमन लाता है; परन्तु अपने स्वभाव से ही अपने-अपने योग्य परिणामों से परिणत होने वाले द्रव्यों के परिणमन में यह कालद्रव्य उदासीनता पूर्वक स्वयं बाह्य सहकारी निमित्त बन जाता है । इस प्रकार काल के आश्रय से प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने पर्यायों से परिणत होता है । "
आधुनिक विज्ञान ने भी परिणमन में उदासीन सहयोगी काल के इस तथ्य को मान्यता दे दी है। आइंस्टीन ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि देश और काल भी घटनाओं में भाग लेते हैं । १
प्रसिद्ध वैज्ञानिक जिन्स का कथन है कि हमारे दृश्य जगत् की सारी क्रियाएं मात्र फोटोन और द्रव्य अथवा भूत की क्रियाएँ हैं तथा इन क्रियाओं का एक मात्र मंच देश और काल है । इसी देश और काल ने दीवार बनकर हमें घेर रखा है। २२
आज के विज्ञानयुग में समय की सूक्ष्मता आश्चर्यजनक नहीं लगती। इसका . व्यावहारिक उदाहरण टेलीफोन द्वारा भी समझा जा सकता है । कल्पना करें, दो हजार किलोमीटर दूर बैठे हुए किसी व्यक्ति से हम टेलीफोन पर बात कर रहे हैं । हमारी ध्वनि विद्युत् तंरगों में परिणत होकर तार के सहारे चल कर दूरस्थ व्यक्ति तक पहुँढ़ती है और उसकी ध्वनि हम तक। इसमें जो समय लगा वह इतना कम है कि हमें उसका अनुभव नहीं हो रहा है और ऐसा लगता है मानों कुछ भी समय नहीं लगा हो और हम उस व्यक्ति के सामने बैठकर ही बात कर रहे हों । चार हजार मी तर को पार करने में तरंग को लगा समय भले ही आपको प्रतीत न हो रहा हो फिर भी समय तो लगता ही है। कारण कि वह तरंग तत्क्षण ही वहाँ नहीं पहुँचती है, अपितु एक-एक मीटर और मिलीमीटर को क्रमशः पारकर के आगे बढ़ती हुई वहाँ पहुँची है। अब हम अनुमान लगायें कि उस तरंग को टेलीफोन के तार के एक मीटर या मिलीमीटर को पार करने में कितना समय लगा होगा ? हम संपूर्णत: : अनुमान लगा सकें या नहीं, परन्तु तरंग को एक मिलीमीटर तार पार
२०. गोम्मटसार जीवकाण्ड २६९-७०
२१. स्वाध्याय शिक्षा अगस्त १९८९ पृ. ५५
२२. स्वाध्याय शिक्षा - अगस्त १९८९ पृ. ५५
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