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चन्द्र, मणि, जुगनू आदि के प्रकाश को उद्योत कहते हैं।९६ प्रभा, उद्योत, प्रकाश ये सभी पर्यायवाची शब्द हैं।
वर्तमान में विज्ञान ने प्रकाश संबन्धी पर्याप्त अन्वेषण किये हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोज है लेसर किरणें । लेसर रश्मियाँ प्रकाश का घनीभूत रूप है। लेसर रश्मियों की शक्ति के संबन्ध में अनुमान लगाया गया है कि एक वग सेंटीमीटर प्रकाशीय क्षेत्रफल में साठ करोड़ वॉट की शक्ति छिपी हुई है। सारी शक्ति की लैंस द्वारा जब एक सेंटीमीटर में घनीभूत कर दिया जाता है तो उससे निकलने वाली रश्मियाँ क्षण भर में मोटी से मोटी इस्पात की चादरों को गलाकर भेद देती
लेसर किरणों के कितने ही उपयोग हैं। किसी भी स्थान पर इन किरणों से न्यूनतम मोटाई का सुराख करना इतना ही सरल है जितना कि राइफल की गोली का मक्खन की डली में से निकलना। इन किरणों से इंच के दस हजारवें भाग तक लघु छिद्र करना संभव है।
क्षण भर में कठोर धातु को लेसर किरणों से पिघलाया जा सकता है। दो या अधिक धातुओं को पिघलाकर उन्हें जोड़ने की क्रिया सेकंडों में पूरी की जा सकती है।
आँखों के पीछे लगे परदे (रटीना) के अपने स्थान से हट जाने से आदमी अन्धा हो जाता है। पहले इसका कोई उपचार नहीं था। अब लेसर किरणों से रेटीना को अपने स्थान पर जमा कर बड़ी ही सरलता से चिकित्सा की जाती है।
मानव शरीर में भी लेसर किरणों से चीरफाड़ किये बिना शल्य चिकित्सा संभव है। यदि इन किरणों को पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर फेंकने का प्रयत्न किया जाय तो काश्मीर में स्थित उपकरण से निकलने वाली लेसर किरणें कन्याकुमारी में रखी पतीली में चाय उबाल सकती हैं।
एक गतिमान् यान को पृथ्वी से ही लेसर किरणों द्वारा शक्ति पहुँचायी जा सकती है। जैसे कोई उपग्रह गति के मन्द होने के कारण नीचे गिरने लगे तो लेसर किरणों के दबाव से अपनी कक्षा में स्थापित किया जाता है । लेसर किरणों की
९६. त.रा.वा. ५.२४.१९.४८९
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