Book Title: Dravya Vigyan
Author(s): Vidyutprabhashreejiji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 258
________________ ३. स्थूलसूक्ष्मः- यह स्कन्ध देखने में आते हैं, परन्तु भेदे नहीं जा सकते या हाथ आदि से ग्रहण नहीं किये जा सकते वे, स्थूल सूक्ष्म हैं, जैसे प्रकाश, छाया, अन्धकार आदि।१०१ ४. सूक्ष्मस्थूलः- चार इन्द्रियों से (चक्षुरिन्द्रिय के अतिरिक्त) जिसके विषयों को ग्रहण किया जा सके, परन्तु जिनका स्वरूप दिखायी दे, वह सूक्ष्मस्थूल . है, जैसे-शब्द, रस, गन्ध, स्पर्श ।१०२ ५. सूक्ष्मः- जिनका इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सके अर्थात् जो इन्द्रियों से अगोचर हैं, वे सूक्ष्म हैं- जैसे कर्मवर्गणा आदि।०३। ६. सूक्ष्मसूक्ष्मः- ये अत्यन्त सूक्ष्म स्कन्ध, जो कर्मवर्गणा से भी छोटे द्वयणुक पर्यंत पुद्गल होते हैं, इनको भी इन्द्रियों से नहीं देखा जा सकता, सूक्ष्मसूक्ष्म कहलाते हैं।१०४ पुद्गल परिणमन के हेतु:ठाणांग में पुद्गल परिणमन के तीन कारण स्पष्ट किये गये हैं:१. प्रयोग परिणत:- किसी भी जीवद्रव्य द्वारा पुद्गल, जैसे जीव शरीर आदि। २. मिश्र परिणत:- जीव के प्रयोग तथा स्वाभाविक रूप से परिणत पुद्गल जैसे मृत शरीर। ३. विस्रसा परिणत:- जिनका परिणमन या रूपान्तरण स्वभाव से ही हो जाता है- जैसे बादल, उल्कापात आदि।१०५ वर्गणा के आधार पर पुद्गल के प्रकार: जीवसंयोग के आधार पर पुद्गल राशि को दो वर्गों में रखा जा सकता है(क) जीव द्वारा ग्रहण किये हुए पुद्गल, और (ख) जीव द्वारा ग्रहण नहीं किये हुए १०१. नियमसार गा. २३ पूर्वार्द्ध १०२. नियमसार गा. २३ उत्तरार्द्ध १०३. नियमसार गा. २४ पूर्वार्द्धल १०४. नियमसार २३ उत्तरार्द्धल १०५. ठाणांग ३.४०१ २३२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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