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विज्ञान उसी कार्य की क्रियान्विति कर सकता है, जो संभव है । अगर विज्ञान से यह अपेक्षा रखी जाए कि वह समाप्त हुए शरीर को पुनः वैसा ही बना दे या व्यतीत हुई ऋतुओं को पुनः आमन्त्रित करे तो यह असंभव होगा। अतः हम कह सकते हैं कि शब्द गुण नहीं, पर्याय है; क्योंकि वह अनित्य है । गुण इसलिए भी नहीं है कि शब्द उत्पन्न होता है । गुण कभी उत्पन्न नहीं होता । गुण त्रैकालिक होते हैं । नित्य आकाश का अनित्य शब्द गुण कैसे हो सकता है? यदि 'शब्द' नित्य और स्थायी होता तो आज सर्वत्र शोर ही शोर होता और भयंकर अशान्ति का माहौल हो जाता, फिर खामोशी या निस्तब्धता संभव ही नहीं थी । परन्तु ऐसा नहीं है । इसी से लगता है, शब्द न आकाश का गुण है, न पुद्गल का, वह तो मात्र पुद्गल की अशाश्वत पर्याय है ।
'शब्द' आकाश का गुण इसलिए भी संभव नहीं है कि आकाश मूर्त्तिक और स्थिर है। उसमें किसी प्रकार के कंपन की संभावना नहीं है, जबकि शब्द तो साक्षात् कंपन है। किसी बजते हुए घंटे पर हाथ रखकर देखें तो हमें इस बात का विश्वास हो जायेगा। जब तक कंपन है, तभी तक शब्द है । ज्यों ही कंपन रुका, शब्द तुरंत बन्द हो जायेगा । अतः यह तर्क और विज्ञान दोनों द्वारा प्रमाणित है कि शब्द पुद्गल की ही क्षणिक पर्याय है न कि आकाश का गुण ।
शब्द कंपन के कारण होता है। पुद्गल में प्रकट होने वाला कंपन वायुमंडल में आ जाता है और वायुमंडल सर्वत्र विद्यमान होने से उस कंपन का भी स्पर्श कर लेता है । उसी वायुमंडल का वह कंपन हमारे कानों का भी स्पर्श करता है, अतः जो शब्द हम सुनते हैं, वह उस वायु का ही कंपन है। अगर वायु विपरीत दिशा में बह रही है तो हमको वह शब्द सुनाई नहीं देता क्योंकि वह कंपन वायु की दिशा में तीव्र वेग से बह जाता है और विपरीत दिशा में मन्दत्व को प्राप्त होता है । इसीलिए, यदि वायु हमारी दिशा में बह रही हो तो दूर का शब्द भी सहज ही सुनने में आ जाता है, यह बात हमारे अनुभव में भी प्रायः आ जाती है । बादल तथा बिजली की कड़कड़ाहट सहजतया हमारे सुनने में आती है क्योंकि वहाँ वायुमंडल है, परन्तु सूर्य में होने वाले विस्फोट हम नहीं सुनते क्योंकि वहाँ के वायुमंडल और पृथ्वी के वायुमंडल के बीच में बड़ा अंतराल है अर्थात् सूर्य के वायुमंडल और पृथ्वी के बीच में बड़ा अंतराल है। इन दोनों के बीच कोई संबन्ध
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