Book Title: Dravya Vigyan
Author(s): Vidyutprabhashreejiji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 240
________________ __अब हमें यह जिज्ञासा हो सकती है कि उपरोक्त लक्षणों से युक्त परमाण पुद्गल कितने समय तक रहता है। भगवान् महावीर ने कहा है कि परमाणुपुद्गल जघन्य एकसमय तक और उत्कृष्ट असंख्य काल तक रह सकता है।४२ . अगर वास्तव में देखा जाय तो मूल पदार्थ तो परमाणु ही है। यह परमाणु स्वतन्त्र है । यह न तो तोड़ा जा सकता है, न देखा जा सकता है। इसकी लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई नहीं है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि परमाणु निराकार हैं क्योंकि निराकार तो साकार के गुणों को धारण नहीं कर सकला। आकारवान् पदार्थ ही आकारवान् के गुणों को धारण करते हैं और गुणों के समुह को धारण करने के कारण ही द्रव्य माना जाता है। अब अगर यह प्रश्न हो कि वह आकार कैसा है, तो इसका उत्तर यही दिया जा सकता है कि वह परमाणु स्वयं ही अपना आकार है। यही उसकी लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई है। ___परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं; यद्यपि वे इन्द्रियों से जाने जा सकते हैं, परन्तु देखे नहीं जा सकते । वे मूर्तिक है, क्योंकि मूर्तिक का इन्द्रियों के माध्यम से देखा जाना मूर्तिक का लक्षण है। वैसे यह समझाने के लिये लक्षण किया गया है, वास्तविक नही। परमाणु का स्वभाव चतुष्टयः परमाणु चार प्रकार के होते हैं- द्रव्य परमाणु, क्षेत्र परमाणु, काल परमाणु और भाव परमाणु। द्रव्य परमाणु चार प्रकार का होता है- उच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य । क्षेत्र परमाणु भी चार प्रकार का होता है- अनादि, अमध्य, अप्रदेश और अविभाज्य । काल परमाणु भी चार प्रकार का होता है- अवर्ण, अगन्ध अरस और अस्पर्श । भाव परमाणु भी चार प्रकार का होता है- वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान्, स्पर्शवान् । ४२. भगवती ५.७.१४ (१) ४३. भगवती २०.५१६-१९ २१४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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