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जुड़ना, टूटना और पुनः जुड़ना। “गलनपूरणस्वभावसनाथ: पुद्गलः, अर्थात् जो गलनपूरण स्वभाव सहित है (जो पृथक् होने और एकत्रित होने के स्वभाव वाला है) वह पुद्गल है। ____पुद्गल शब्द के व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ से इससे तीन बातें स्पष्ट होती हैं:- . १. पुद्गल गलन और पूरण स्वभाव वाला होता है। २. भेद और संघात के अनुसार जिसमें पूरण-गलन क्रियाएँ अन्तर्भूत होती हैं। ३. जीव जिन्हें शरीर, आहार, विषय और इन्द्रिय उपकरणादि के रूप में निगलता
है या ग्रहण करता है वे पुद्गल हैं।
जैनदर्शन में छहद्रव्यों की प्ररूणता है। उन षड्द्रव्यों में पाँच द्रव्य तो अरूपी और अमूर्त हैं, परन्तु पुद्गल ही एक ऐसा द्रव्य है जो मूर्तिक/रूपी है।
यह पुद्गल पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध, आठ स्पर्श रूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित तथा लोक का एक अंशभूत द्रव्य है ।२३ पुगल के भेद :- पुद्गल दो प्रकार के होते हैं- परमाणु पुद्गल और नो परमाणु पुद्गल अर्थात् . स्कन्ध। परमाणु के लक्षण:
स्कन्ध का अन्तिम अविभागी भाग एक, शाश्वत, मूर्तरूप से उत्पन्न होने वाला और अशब्द है।३५
भगवतीसूत्र में भी परमाणु की व्याख्या इसी प्रकार से बतायी गयी है- एक वर्ण, एक रस, एक गन्ध और दो स्पर्श वाला परमाणु पुद्गल कहा गया है। एक वर्ण वाला या तो लाल, पीला, काला, नीला या सफेद होगा। एक गन्ध में या
३१. नियमसार वृत्ति ९ एवं बृहद्र्व्य संग्रह वनि १५ ३२. रूपिणः पुद्गलाः - त.सू. ५.४ ३३. ठाणांग ५.१७४ ३४. ठाणांग २.२२८ ३५. पंचास्तिकाय ७७
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