________________
प्रायोगिक:- प्रायोगिक बन्ध वह है जो प्रयोगजन्य हो; जिनमें मन-वचनकाय का पुरुषार्थ हो । यह प्रायोगिक बन्ध भी दो प्रकार का है- अजीव-विषयक बन्ध, और जीवाजीवविषयक बन्ध । अजीवविषयक बन्धः- अजीव पदार्थों में होने वाला पारस्परिक बन्ध अजीव विषयक है, जैसे-लाख और काठ आदि का बन्ध । जीवाजीवविषयक बन्धः- पुद्गल और जीव का एक क्षेत्रावगाही बन्ध जीवाजीवविषयक बन्ध है। यह दो प्रकार का है- कर्मरूप परिणत पद्लाणुओं का जीवप्रदेशों के साथ एकक्षेत्रावगाही बन्ध कर्मबन्ध के नाम से जाना जाता है, और फर्मफल के परिणामस्वरूप औदारिक आदि शरीरों के साथ जीव का एकक्षेत्रावगाही बन्ध नोकर्मबन्ध के नाम से जाना जाता है।७० स्वाभाविक बन्धः- यह भी दो प्रकार का होता है- आदिमान् और अनादिमान् ।
आदिमान् बन्धः- स्निग्ध रुक्ष गुणों के निमित्त से बिजली, उल्का, जलधारा इन्दधनुष आदि रूप पुद्गल बंध आदिमान है। अनादिमान बन्धः- यह नौ प्रकार का है- धर्मास्तिकाय बन्ध, धर्मास्तिकाय देशबन्ध, धर्मास्तिकाय प्रदेशबन्ध, अधर्मास्तिकाय बन्ध, अधर्मास्तिकाय देशबन्ध, अधर्मास्तिकाय प्रदेशबन्ध, आकाशस्तिकाय बन्ध, आकाशस्तिकाय देशबन्ध, और आकाशस्तिकाय प्रदेशबन्ध। . बन्ध की प्रक्रिया:
- तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वाति ने बंध को भी पुद्गल पर्याय बताया और साथ ही बंध की प्रक्रिया को भी स्पष्ट किया । बंध क्यों और कैसे होता है? उमास्वाति ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि स्निग्ध (स्नेह) और रूक्षता के कारण की बंध होता
... आचार्य अकलंक ने स्निग्धता और रूक्षता को समझाते हुए स्पष्ट किया है कि बाह्य और आभ्यन्तर कारणों से स्नेह पर्याय की प्रकटता से जो चिकनापन है,
७०. त.रा.वा. ५.२४.९.४८७ ७१. त.रा.वा. ५.२४.७.४८७ ७२. त.सू. ५.३३
२२२
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org