Book Title: Dravya Vigyan
Author(s): Vidyutprabhashreejiji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 246
________________ "The Jain account of sound is a Physical concept. All other Indian Systems spoke of sound as a quality of space. But explains in relation with material particles as absolute of concision of atmospheric molecules. To prove this the jain thinkers employed arguments which are now generally found in text book of physics." अन्य सब भारतीय विचारधाराएँ शब्द को आकाश का गुण मानती हैं, जबकि जैनदर्शन उसे पुद्गल मानता है। जैनदर्शन की इस विलक्षण मान्यता को विज्ञान ने प्रमाणित कर दिया । ध्वनि के विविध उपयोग: आज के युग में ध्वनि के उपयोग होने लग गये हैं । उच्च श्रवणोत्तर ध्वनि (Ultrasonic Sound) का उपयोग घड़ी की बिना खोले उसके कल पुर्जे साफ करने में किया जाता है। धातु के बने पुर्जे के दांते काटने तथा जोड़ने (वेल्डिंग) में भी इसका उपयोग होता है । चिकित्सालय में इसका विशेष उपयोग होता है, क्योंकि वस्त्र व औजार साफ होने के साथ-साथ इससे जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं। कपड़े धोने में भी इसका उपयोग हो सकता है। धोने योग्य वस्त्रों को जल में डालकर जल में श्रवणोत्तर ध्वनि प्रवेश कराई जाती है। उस बुलबुलाहट से रासायिनक परिवर्तन द्वारा हाइड्रोजन पर आक्साइट पैदा हो जाता है जो उसके मैले रंग को साफ कर देता है । चिकित्सा क्षेत्र में इसके और भी महत्त्वपूर्ण उपयोग हैं। शरीर के अन्तः अंगों के चित्र लेने के लिए Ulterasonic Sound Sonography की जाती है; पथरी के रोगी को एक टेबल पर सुलाकर पथरी की ओर Ulterasonic Sound निश्चित मात्रा में केन्द्रित की जाती है, उस ध्वनि से मांस में तो कोई परिवर्तन नहीं होता किन्तु पथरी टूट-टूट कर चूर्णीभूत हो जाती है जो रोगी के मूत्र के माध्यम से बाहर आ जाती है । मोतियाबिंद का इलाज भी इससे संभव है। धातु की बनी एक बारीक नली की नोंक से ध्वनि आँख में लेंस जिसे मोतिया बिंद कहते हैं उस पर केन्द्रित की जाती है, उससे मोतियाबिंद तरल पदार्थ में रूपांतरित हो जाता है और तरल पदार्थ को नली के खोखले मार्ग से बाहर खींच लिया जाता है । अपराधियों को पकड़ने में ध्वनि कैसरा पर्याप्त सहयोगी बनता है । ध्वनि कैमरे में ध्वनि का चित्रांकन किया जाता है । अंगुलियों की छाप की तरह ध्वनि २२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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