Book Title: Dravya Vigyan
Author(s): Vidyutprabhashreejiji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 252
________________ स्पर्शयुक्त भी होता है, अतः अन्धकार भी स्पर्शवान् है; और चूँकि स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण में से किसी एक के रहने पर बाकी के तीन गुण उसमें अवश्य रहते हैं, यही पुगल का लक्षण भी है । अतः प्रकाश के ही समान अन्धकार भी पुद्गल की अवस्था है, प्रकाश और अंधकार में किसी प्रकार का अन्तर नहीं है । यहाँ प्रश्न हो सकता है कि दीपक के परमाणु अन्धकार पर्याय (विसदृश ) में कैसे परिणत हो सकते हैं? निम्नलिखित उदाहरण से इस प्रश्न का समाधान हो जायेगा । प्रकाशवान् अग्नि से गीले ईंधन के सहयोग से अप्रकाशवान् धुएँ की उत्पत्ति होती है। अतः यह नियम नहीं हो सकता कि सदृश से सदृश कार्य ही उत्पन्न होता है। अत: यह नियम नहीं हो सकता कि सदृश से सदृश कार्य ही उत्पन्न हो । अमुक साम्रगी मिलने पर विसदृश कार्य भी उत्पन्न होते हैं । ४ विज्ञान ने भी अन्धकार को प्रकाश की तरह स्वतन्त्र पदार्थ माना है। विज्ञान के अनुसार अन्धकार में भी अवरक्त ताप किरणों का सद्भाव है जिनमें बिल्ली और उल्लू की आँखें तथा कुछ विशिष्ट अचित्रीय" पट (Photographic Plates) प्रभावित होते हैं। इससे स्पष्ट है कि अन्धकार का अस्तित्व दृश्य प्रकाश (visible light) से पृथक् है । छाया : प्रकाश पर आवरण पड़ने पर छाया उत्पन्न होती है । ६ प्रकाश पथ में अपारदर्शक पदार्थों (Opeque bodies) का आ जाना आवरण कहलाता है । छाया अन्धकार की कोटि का ही एक रूप है । यह भी प्रकाश का अभाव न होकर पुद्गल की पर्याय है । छाया दो प्रकार की होती है । दर्पण आदि स्वच्छ द्रव्यों में आदर्श के रंग आदि की तरह मुखादि का दिखना, तद्वर्णपरिणत छाया कहलाती है, तथा दूसरी प्रतिबिम्ब मात्र होती है । ८७ विश्व में प्रत्येक इन्द्रियगोचर होने वाले मूर्त्त पदार्थ से प्रतिपल तदाकार प्रतिच्छाया प्रतिबिंब के रूप में निकलती रहती है और वह पदार्थ के चारों ओर ८४. स्याद्वादमंजरी ५.१६.१८ ८५. हजारीमल स्मृति ग्रन्थ पृ. ३८५ ८६. स. सि. ५.२४.५७२ ८७. त. रा. वा. ५.२४१६, १७.४८९ Jain Education International २२६ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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