Book Title: Dravya Vigyan
Author(s): Vidyutprabhashreejiji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 239
________________ तो सुगन्ध होती है या दुर्गन्ध । यदि एक रस हो तो या तो तीखा या कड़वा या कसैला या खट्टा या मीठा । दो स्पर्श में शीत-स्निग्ध या शीत-रुक्ष या उष्णस्निग्ध या उष्ण-रुक्ष होगा, (अर्थात् स्पर्श दो होंगे और वे विरोधी होंगे।) ___ महावीर ने हजारों वर्षों पूर्व ही परमाणु के संबन्ध में तलस्पर्शी समाधान दे दिये थे। आज वैज्ञानिक अणु के अन्वेषण करने में जुटे हुए हैं, किन्तु अणु के संबन्ध में जिस सूक्ष्मता से महावीर ने विवेचन किया, आज के वैज्ञानिक वहाँ तक नहीं पहुँच पाये हैं। आज के वैज्ञानिक जिसे अणु कहते हैं, महावीर उसे स्कन्ध कहते हैं। महावीर की दृष्टि में परमाणु इन्द्रियातीत है। वह स्कन्ध से भिन्न निरंश तत्त्व है । परमाणु पुद्गल अविभाज्य, अच्छेद्य, अभेद्य एवं अदाह्य है। ऐसा कोई उपचार या उपाधि नहीं, जिससे उसका उपचार किया जा सके।३७ परमाणु का वही आदि, वही मध्य और वही अन्त है।८ कहा भी है"अंतादि अन्तमज्झं, अंतंतं व इंदिए गेज्झं। जं दव्वं अविभागी तं परमाणुं विजाणीहि ।”३९ . . ये परमाणु इन्द्रिग्राह्य नहीं होते। परमाणु मात्र ‘कारण' ही नहीं, कार्य भी है, क्योंकि वह स्कन्धों के भेद पूर्वक उत्पन्न होता है। परमाणु में स्नेह आदि गुण उत्पन्न और विनष्ट होते रहते हैं । अतः कथंचित् वह अनित्य भी है । भगवतीसूत्र में गौतमस्वामी ने प्रश्न किया-क्या यह एक प्रदेशी परमाणु कांपता है? तब भगवान् . महावीर ने स्याद्वाद नय से इसका समाधान दिया-वह कांपता भी है और नहीं भी।४० जब गौतमस्वामी ने अगला प्रश्न पूछा-क्या परमाणु तलवार की धार या उस्तरे कीधार पर अवगाहन करके रह सकता है? भगवान् ने कहा- वह अवगाहन करके रह सकता है। २६. भगवती २०.५.? ३७. भगवती ५.७.३ (२) ३८. भगवती ५.७.१० (१) एवं त.सू. ५.२५ ३९. त.रा.वा. ४.५.२५ पृष्ठ ४९१ से उद्धृत । ४०. भगवती ५.७.३ (११) ४१. भगवती ५.७.३. (१) २१३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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