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और वह वृत्तिमान प्रदेश ही है, क्योंकि जो अप्रदेश हैं उनमें उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य नहीं हो सकता । ५
अतः हमें काल को एक प्रदेशी के रूप में तो स्वीकार करना ही है, क्योंकि प्रदेश रहित द्रव्य तो शून्य होता है । ८६
काल अनन्त समययुक्त है :
काल को अनन्तसमय युक्त कहा गया है। " काल अनन्तसमय वाला किस अपेक्षा से है इसे पूज्यपाद ने इस प्रकार स्पष्ट किया है- वर्तमान काल तो यद्यपि एक समय वाला है, परन्तु अतीत और अनागत तो अनन्त समय वाला है । अतः अतीत और अनागत की अपेक्षा काल अनन्तसमय युक्त और वर्तमान की अपेक्षा एक समययुक्त है ।"
काल के प्रकार :
काल के भेद की चर्चा भगवतीसूत्र में इस प्रकार उपलब्ध होती है। जब भगवान् से यह प्रश्न पूछा कि काल कितने प्रकार का है? सुदर्शन की इस शंका भगवान् ने काल के निम्न चार भेद बताते हुए समाधान किया
१. प्रमाणकाल
२. यथायुर्निवृत्ति काल
३. मरणकाल
४. और अद्धाकाल"
१. प्रमाणकाल - प्रमाणकाल दो प्रकार का है, दिवस प्रमाणकाल और रात्रिप्रमाणकाल | जिससे रात्रि, दिवस, वर्ष, शतवर्ष आदि का प्रमाण जाना जाय, उसे प्रमाणकाल कहते हैं ।
२. यथायुर्निवृत्तिकाल - आत्मा ने जिस प्रकार की आयु का बन्ध बांधा है, उसी प्रकार उसका पालन करना, भोगना, यथायुर्निवृत्ति काल है ।
८५. प्र. सा.ता. पृ. १४४
८६. प्र. सा. १४४
८७. त. सू. ५.४०
८८. स. सि. ५.४०.६०४
८९. स. सि. ११.११.७७
९०. भगवती ११.११७.८
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