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१. तिर्यंच :- समस्त तिर्यंच पंचेन्द्रिय तीन प्रकार के हैं- जलचर, थलचर और खेचर । २८५
जो जल में रहते हैं, वे जलचर हैं। जलचर पाँच प्रकार के हैं-मत्स्य, कछुए, ग्राह, मगर और संसुमार । मत्स्य पाँच, कच्छप दो, ग्राह पाँच, मगर दो, एवं सुमार एक ही प्रकार के बताये गये हैं । २८६
ये सभी तिर्यंचयोनिक एक अपेक्षा से दो प्रकार के भी हैं - संमूर्च्छिम और गर्भज। इनमें जो संमूर्च्छिम हैं, वे नपुंसक एवं गर्भज स्त्री, नपुंसक तीनों होते हैं। २०७
जो माता-पिता के बिना संयोग के अपने आप उत्पन्न हों, वे संमूर्च्छिम और जो माता-पिता के वीर्य या संयोग से उत्पन्न हो, वे गर्भज होते हैं ।
जो जलरहित स्थान पर अर्थात् पृथिवी पर रहते हैं, उन्हें थलचर या स्थलचर कहते हैं । स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय चार प्रकार, के हैं - एक खुर वाले, दो खुर वाले, गण्डीपद (सुनार की एरण जैसे पैर वाले) और नखपाद (पैर) वाले । २८८
जीवविचार में स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय को अन्य अपेक्षा से तीन प्रकार का कहा गया है । वे ये हैं- चतुष्पद - गाय आदि, उरः परिसर्प - पेट के बल चलने वाले सर्प आदि और भुजपरिसर्प-भुजा के बल चलने वाले नोलिये आदि । २८९
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प्रज्ञापना में आगे एकखुर, द्विखुर, गण्डीपद, एवं नखपाद के भेद और नाम बताये हैं । २९०
इनमें जो संमूर्च्छिम हैं, वे नपुंसक हैं, जो गर्भज हैं, वे स्त्री, पुरुष और नपुंसक तीनों हैं । २९९
२८५. प्रज्ञापना १.६१ तथा जीवविचार २०
२८६. प्रज्ञापना १.६२-६७
२८७. प्रज्ञापना १.६८
२८८. प्रज्ञापना १.६९
२८९. जीवविचार २१
२९०. प्रज्ञापना १.७१.७४
२९१. प्रज्ञापना १.७५
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