________________
उक्त पर्वतों में से मेरु चाररत्नमय, शेष सात स्वर्णमय हैं। सबसे बाहर अवस्थित महासमुद्र का विस्तार तीन लाख बाईस हजार योजन प्रमाण है। अंत में लौहमय चक्रवाल पर्वत स्थिर है।
निमिंधर और चक्रवाल पर्वतों के मध्य में जो समुद्र स्थित है उसमें जम्बूद्वीप, पूर्वविदेह, अवरगोदानीय और उत्तरकुरु ये चार द्वीप हैं। इनमें जम्बूद्वीप मेरु के दक्षिण भाग में है । उसका आकार शकट के समान है। उसकी तीन भुजाओं में से दो भुजाएँ दो-दो हजार योजन की ओर एक भुजा तीन हजार पचास योजन की है।७६
जम्बूद्वीप में उत्तर की ओर बने कीटादि और उनके आगे हिमवान् पर्वत अवस्थित हैं । हिमवान् पर्वत से आगे उत्तर में पाँच सौ योजन विस्तृत अनवतप्त नाम का अगाध सरोवर है। इससे गंगा, सिंधु, वक्षु और सीता ये चार नदियाँ निकली हैं । इस सरोवर के समीप जम्बूवृक्ष है। इससे इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा है । ७७
नरकलोक :- जम्बूद्वीप के नीचे बीस हजार योजन विस्तृत अवीचि नरक है। उसके ऊपर क्रमशः प्रतापन, तपन, महारौरव, रौरव, संघात, कालसूत्र और संजीव नाम के सात नरक और हैं । ७८
ज्योतिर्लोक :- मेरु पर्वत की भूमि से चालीस हजार योजन ऊपर चन्द्र और सूर्य परिभ्रमण करते हैं । चन्द्रमण्डल का प्रमाण पचास योजन और सूर्य मंडल का प्रमाण इक्यावन योजन है । जिस समय जम्बूद्वीप में मध्याह्न होता है, उस समय उत्तरकुरु में अर्धरात्रि, पूर्वविदेह में अस्तगमन और अवरगोदानीय में सूर्योदय होता है । ७९
के:
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की नवमी से रात्रि की वृद्धि और फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की नवमी से उसकी हानि प्रारभ्म होती है। रात्रि की वृद्धि दिन की हानि और दिन की वृद्धि रात्रि की हानि होती है। सूर्य के दक्षिणायन में रात्रि की
७६.
. गणितानुयोग भूमिका पृ. ८३ ७७. अभिधर्मकोष ३.५७
७८. अभिधर्मकोष ३.५८
७९. अभिधर्मकोष ३.६०
Jain Education International
१७५
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org