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रूक्षत्व परमाणुओं का मूलगुण माना गया है। कुछ प्रमाणों के आधार पर यह एक प्रकार का (ऋण अथवा धन) विद्युत् आवेश हो ऐसा लगता है। पोइनेकर के अभिमत को यदि जैनदर्शन के विवेचित सिद्धान्त का केवल शब्दान्तर ही माना जाय तो अबद्ध, पार्श्व, स्पष्ट, पुद्गल का अर्थ वास्तविक शून्य तापमान वाले पुद्गल हो सकता है। कुछ भी हो, दोनों उक्तियों के बीच साम्य है । यह स्पष्ट है कि पोइनेकर ने आकाश की सान्तता और परिमितता के अन्तर को स्पष्ट करने के लिये उक्त विचार दिया है, जबकि जैनदर्शन ने लोकाकाश की सान्तता और अलोकाकाश में गति, स्थिति, अभाव के कारण के रूप में उक्त तथ्य बताया
__भाव यह है कि आधुनिक विज्ञान जैनदर्शन में वर्णित आकाश के स्वरूप को स्वीकार करता है तथा दोनों में समानता भी है। लोकालोक का पौर्वायपर्य :___ आर्य रोह ने पूछा-भगवन् ! प्रथम लोक और फिर अलोक बना या प्रथम अलोक फिर लोक बना। भगवान् ने कहा-रोह ! ये दोनों शाश्वत हैं। इनमें पहले पीछे का क्रम संभव नहीं है ।२४ ___ आकाशास्तिकाय द्रव्य से जीवों और अजीवों पर क्या उपकार होता है? • गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा। भगवान् महावीर ने कहा--
आकाशास्तिकाय से ही तो पाँचों द्रव्य आधार प्राप्त करते हैं। आकाश में ही तो धर्म-अधर्म व्याप्त होकर रहते हैं। जीवों को अवगाहन भी आकाश देता है। काल भी आकाश में ही बरतता है। पुद्गलों का रंगमंच भी आकाश बना हआ
दिक् :
आकाश के जिस भाग से वस्तु का व्यपदेश या निरूपण किया जाता है, वह दिशा कहलती है।२६
२३. जैन भारती १५ मई, १९६६ २४. भगवती १.६.१७.१८ २५. भगवती १३.४.२५ २६. दिश्यते व्यपदिश्यते पूर्वादितया वस्तवनयेति दिक्-स्था. वृत्ति ३.३
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