Book Title: Dravya Vigyan
Author(s): Vidyutprabhashreejiji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 189
________________ सावधानी से आयोजित किया गया कि संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। इसका निष्कर्ष सरल भाषा में यह रहा कि प्रकाश-किरणों के वेग में चाहे वे फेंकी गयी हों, कोई अंतर नहीं पड़ता।२६ ___ आइंस्टीन के अनुसार इस निष्कर्ष से वैज्ञानिक-जगत में हलचल प्रारंभ हो गयी; क्योंकि इस निष्कर्ष से भी अधिक मान्य कोपरनिकस सिद्धान्त, जिसमें यह सिद्ध किया था कि 'पृथ्वी स्थिर नहीं, गतिशील है' को छोड़े या ईथर सिद्धांत को। बहुत से भौतिकविज्ञान वेत्ताओं को यह लगा कि यह विश्वास करना अधिक आसान है कि पृथ्वी स्थिर है बनिस्पत इसके कि तरंगें, प्रकाश तरंगें, विद्युतचुंबकीय तरंगें बिना किसी सहारे के अस्तित्व में रह सकती हैं। इन्हीं विभिन्न मतधाराओं के कारण पच्चीस वर्ष पर्यंत एक मत नहीं बन पाया। नयी कल्पनाएँ हुईं, परीक्षण हुए, परन्तु निष्कर्ष यही रहा कि 'ईथर' में पृथ्वी का प्रत्यक्ष वेग शून्य - ईथर प्रकाश की गति को प्रभावित नहीं करता, इसलिए आइंस्टीन ने उसके अस्तित्व का निरसन किया। परन्तु यह तो स्वीकार करना ही होगा कि गतिनियामक तत्त्व के अभाव में पदार्थ अनन्त में भटक जाते और एक दिन वर्तमान विश्व प्रकाश शून्य हो जाता। .'ईथर' के विषय में भौतिक विज्ञानवेत्ता डॉ.ए.एस. एडिंगटन लिखते हैं Nowadays, it is agreed that ETHER is not a kind of matter, being non material, its properties are quite unique characters such as mass and rigidity which we meet with in matter will naturally be absent in ETHER will have new definite characters of its own non-material ocean of ETHER. आजकाल यह स्वीकार कर लिया गया है कि "ईथर भौतिक द्रव्य नहीं है। भौतिक की अपेक्षा उसकी प्रकृति भिन्न है । भूत में प्राप्त पिण्डत्व और घनत्व गुणों २६. जैन दर्शन और अनेकांत:- युवाचार्य महाप्रज्ञ पृ. २५-२६ . २७. डॉ. आइंस्टीन और ब्रह्माण्ड पृ. ४३-४६ १६३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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