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तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार भी जीव और पुद्गल की स्थिति उदासीन सहायक को अधर्मास्तिकाय कहा है। ___ श्री पूज्यपाद ने अधर्मास्तिकाय का उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार घोड़े को ठहरने में पृथ्वी साधारण निमित्त है, उसी प्रकार जीव और पुद्गल को ठहरने में अधर्मास्तिकाय साधारण निमित्त है।३३
लघु द्रव्यसंग्रह के अनुसार स्थित होते जीवों और पुद्गलों को जो स्थिर होने में सहकारी कारण हैं उसे अधर्मास्तिकाय कहते हैं, जैसे छाया यात्रियों को स्थिर होने में सहकारी है, परन्तु वह गमन करने वाले जीव और पुद्गल को स्थिर नहीं करती।४
षड्दर्शनसमुच्चय की टीका में भी अधर्मास्तिकाय के इसी लक्षण को पुष्ट किया गया है।३५ अधर्मास्तिकाय का अपना कोई स्वतन्त्र कार्य नहीं है। स्थूल रुकना तो स्पष्ट दृष्टिगत होता है, सूक्ष्म स्थिति दृष्टिगत नहीं होती है। परन्तु सूक्ष्म ठहरना पदार्थ के मुड़ने के समय होता है । चलता-चलता ही पदार्थ यदि मुड़ना चाहे तो उसे मोड़ पर जाकर क्षणभर ठहरना पड़ेगा। यद्यपि रुकना दृष्टिगत नहीं होता, पर होता अवश्य है। इस सूक्ष्म तथा स्थूल अवस्थान में जो सहायक तत्त्व - है, उसे अधर्मास्तिकाय कहते हैं।२६ . इस पर से यह न समझना चाहिए कि जो सदा सर्वदा से रुका हुआ है उसमें भी अधर्मास्तिकाय का सहयोग है। अधर्मास्तिकाय उसे सहयोग करता है, जो चलते-चलते ठहरे। जो चलता ही नहीं, उसे ठहराने का प्रश्न ही नहीं है। जैसे आकाश चलता ही नहीं तो उसे ठहराने का प्रश्न ही नहीं है।
कुन्दकुन्दाचार्य के अनुसार न धर्मास्तिकाय गमन करता है और न अधर्मास्तिकाय स्थिर करता है । जीव और पुद्गल स्वयं अपने परिणामों से गति और स्थिति करते हैं। ३२. त.सू. ५.१७ ३३. स.सि. ५.१७.५५९ ३४. लघु द्रव्य संग्रह ९ ३५. षड्दर्शन समुच्चय टीका ४९. १६९ ३६. पदार्थ विज्ञान :- जिनेन्द्र वर्णी पृ. १९० ३७. पं. का. ८९
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