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२. वैक्रिय शरीर :____ अणिमा आदि आठ, ऐश्वर्य- संबन्ध से स्वयं के शरीर को एक, अनेक, छोटा, बड़ा आदि नाना प्रकार के शरीर की संरचना करना विक्रिया है। यह विक्रिया जिस शरीर का प्रयोजन है, वह वैक्रिय है।३२७ वैक्रिय शरीर देवों और नारकियों के होता है । विक्रियाऋद्धि इससे भिन्न है, जो औदारिक शरीर के आश्रय से होती है।
३. आहारक शरीर :
सूक्ष्म पदार्थ का ज्ञान करने के लिए या असंयम को दूर करने की इच्छा से प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती मुनि जिस शरीर की रचना करता है, वह आहारक शरीर
है।३२८
४. तेजस शरीर :
जो दीप्ति का कारण है या तेज में उत्पन्न होता है, उसे तैजस शरीर कहते हैं ।३२९ ग्रहण किए हुए आहार को यही शरीर पचाता है ।३३००
५. कार्मण शरीर :
कर्मों (ज्ञानावरणादि आठ कर्मप्रकृतियों) से उत्पन्न शरीर कार्मण शरीर है। यद्यपि सारे शरीर कर्म के निमित्त से उत्पन्न होते हैं, तो भी रूढ़ि से विशिष्ट शरीर को कार्मण शरीर कहते हैं।३१ यहाँ पर कर्मसमूह उपादान कारण के रूप में होता है, अर्थात् यह शरीर कर्मप्रकृतियों का ही बना होता है, जबकि अन्य शरीरों में शरीर नाम कर्म आदि विशिष्ट कर्मप्रकृतियाँ निमित्त कारण मात्र होती हैं।
३२७. स.सि. २.३६.३३१ ३२८. वही ३२९. वही ३३०. पैंतीस बोल विवरण पृ. ११ ३३१. स.सि. २.३६.३३१
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