________________
और कषाय भी नहीं, अतः ऐसे जीव के कोई लेश्या नहीं मानी गयी है, वह परमपारिणामिक भाव से युक्त होता है।
लेश्या छह प्रकार की होती है- कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल ।३४१
लेश्या भावना विशेष को कहते हैं। प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार विभिन्न जीवों में भिन्न-भिन्न प्रकार से लेश्यास्थिति होती है जिसका दिग्दर्शन आगे के अनुच्छेदों में कराया जा रहा है। _ नैरयिकों में कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या होती हैं। तिर्यंच योनि में छहों लेश्याएं होती हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय एवं वनस्पतिकाय में कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या होती हैं । ३४२
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तेजःकाय और वायुकाय में कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएँ पायी जा सकती हैं।३४३ तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में छहों लेश्याएँ पायी हैं।३४४ संमूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय में कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएँ पायी जाती हैं ।३४५ गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय में कृष्ण, लेश्या से शुक्ल लेश्या पर्यंत छहों लेश्याएँ पायी जाती हैं ।३४६ ____संमूर्छिम मनुष्य में कृष्ण, नील, कापोत,-ये तीन२४७ और गर्भज मनुष्य में छहों लेश्या पायी जाती हैं ।३४८ ___भवनवासी निकाय के देवों में कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या, व्यन्तर देवों में भी ये चार, ज्योतिषी देवों में मात्र तेजोलेश्या और वैमानिक देवों में तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ल लेश्याएँ पायी जाती हैं। अन्य सभी स्थानों
३४१. ठाणांग ६.४७ ३४२. प्रज्ञापना १७.११५९-६१ ३४३. प्रज्ञापना १७. ११६२ ३४४. प्रज्ञापना १७. ११६३ . ३४५. प्रज्ञापना १७. ११६३ (२) ३४६. प्रज्ञापना १७. ११६३ (३) ११६४ (१) ३४७. प्रज्ञापना १७. ११६४ (२) ३४८. प्रज्ञापना १७. ११६४ (२) ३ प्रज्ञापना १७.११६४ (३)
१२७
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org