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वैशेषिक कुछ पदार्थों को नित्य और कुछ पदार्थों को अनित्य मानते हैं। अतः वे अर्ध बौद्ध भी कहे जाते हैं । शंकराचार्य ने वैशेषिकों को अर्धबौद्ध कहकर संबोधित किया है।८२ ऊर्वता एवं तिर्यगंश की अपेक्षा द्रव्यः___ अभेद दृष्टिकोण को ‘सामान्य' एवं भेदग्राही दृष्टिकोण को 'विशेष' कहते हैं। इन्हें ही नय की भाषा में क्रमशः द्रव्यास्तिक और पर्यायास्तिक कहते हैं। . जगत के सभी पदार्थ सामान्य-विशेषात्मक होते हैं । सामान्य को अनुवृत्त एवं विशेष को व्यावृत्त भी कहते हैं। प्रत्येक वस्तु में सत् आदि रूप की समानता होने . से अनुवृत्ति एवं विसदृशता होने के कारण व्यावृत्ति रूप ज्ञान का हेतु पाया जाता हा
पूर्व पर्याय का व्यय और नवीन पर्याय का उत्पाद, इन दोनों अवस्थाओं में द्रव्यत्व की स्थिति अविच्छिन्न रूप से रहने से इसे नित्य परिणामी कहते हैं, और इस स्वभाव में ही अर्थक्रिया संभव है।८३
सामान्य के दो भेद हैं- 'तिर्यक् सामान्य' और 'ऊर्ध्वता सामान्य' । समान परिणाम को तिर्यक् सामान्य एवं पूर्व व उत्तर पर्याय में रहने वाले को ऊर्ध्वता सामान्य कहते हैं।८४
... ऊर्ध्वता सामान्य अपनी कालक्रम से होने वाली क्रमिक पर्यायों में ऊपर से नीचे तक व्याप्त रहता है, साथ ही सहभावी गुणों को भी व्याप्त करता है। तिर्यक् सामान्य तिरछा चलता है। अनेक स्वतन्त्र सत्ताक मनुष्यों में सादृश्यमूलक जाति की अपेक्षा मनुष्यत्व की सामान्य कल्पना तिर्यक् सामान्य कहलाती है। ८२. प्रो. ए.बी. ध्रुवः स्याद्वादमंजरी पृ. ५४ ८३.अनुवृत्तव्यावृतप्रत्ययगोचरत्वात् पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्ति- स्थिति
लक्षणपरिणामेनार्थक्रियोपपतेश्श.-अष्टस. पृ. १६२. ८४. सदृशपरिणामास्तिर्यक्खण्डमुण्डादिषु गोत्ववत् एवं परापरविवर्तव्यापि द्रव्यमूर्ध्वता मृदिव __ स्थासादिषु. - अष्टस. पृ. १६४ ८५. पं. महेन्द्रकुमारजी: जैन दर्शन पृ. ४८१
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