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- इन सभी एकान्तवादों का खंडन करके जैन दर्शन वस्तु का स्वरूप विरोधीयुगलों द्वारा प्रतिपादित करता है।
उत्पाद क्या है:
हमने द्रव्य को त्रिलक्षणात्मक सिद्ध किया हैं परन्तु जिज्ञासा हो सकती है कि 'उत्पाद'क्या है? किसका उत्पाद होता है? ग्रन्थकार यह स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं- “अपनी-अपनी जाति को छोड़ते हुए बाह्य और आन्तरिकदोनों निमित्तों को पाकर चेतन द्रव्य और अचेतन द्रव्य का अन्य स्वपर्याय में परिवर्तित होना उत्पाद है ।१९५
पूर्वकालिक असत् का उत्तरकाल में सत्तालाभ उत्पाद नहीं है, अपितु अननुभूत का उत्तरकाल में प्रादुर्भाव ही उत्पाद है ।११६ विनाश क्या है:
अपनी जाति का त्याग किये बिना पूर्व पर्याय का नाश होना विनाश या व्यय है, जैसे पिण्डरूप आकृति का नष्ट होना ।११७
उत्पाद-व्यय की इस प्रवाह परम्परा में स्थायिता न तो नष्ट होती है और न उत्पन्न । द्रव्य की एक पर्याय का व्यय होता है और दूसरी पर्याय का उत्पाद, परन्तु द्रव्य ध्रुव बना रहता है ।११८ ___ उत्पाद और व्यय युक्त पर्याय, गुण, और ध्रौव्य से युक्त सत् (द्रव्य) का ही अस्तित्व है। 'उत्पाद-व्यय' अर्थात् पर्याय द्रव्य रूप स्थायी धर्मी के धर्म हैं। न तो धर्म धर्मी से विभक्त होता है और न धर्मी धर्म का परित्याग करते हैं। धर्म और धर्मी की भिन्नता प्रमाणसिद्ध नहीं है। धर्मधर्मात्मक वस्तु ही प्रमाण का विषय है।१९ धर्म और धर्मी की सत्ता कथंचित् सापेक्ष एवं कथंचित् निरपेक्ष है। ११५. चेतनस्याचेतनस्य वा द्रव्यस्य....घटपर्यायवत्-स.सि. ५.३० ५८४ ११६. उत्पादो भूतभवनं. - शास्त्रवार्ता. ७.१२ ११७. तथा पूर्वभाव विगमनं व्ययः यथा घटौत्पत्तौ पिण्डाकृतेः स.सि. ५.३०५८४
विनाशस्तद्विपर्यय: शास्त्रवार्ता. ७.१२ एवं-त.वा. ५.३० ११८. प्र.सा.१०३. ११९. षड्दर्शनसमुच्चय टीका ५७.३६.३
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